Wednesday, October 8, 2014

गजल-३३१ 

लाठी राखितो अहिंसक छलाह
सत झूठक प्रखर मिमांसक छलाह

संसाधन अछैत ओ शांतिदूत
देशी चीजकेँ प्रशंसक छलाह 

यौ कहनाइ बड सहज छै जनाब
सोचू कोन हाड़ मांसक छलाह 

तहिया लोक की रहै बड बताह
मानल जे सए शतांशक छलाह 

जेहन ओ छलाह जेहन छलाह
हमरे  आ अहाँक वंशक छलाह 

यौ राजीव मानि लेलक खराप
धरि जगती कहत अक्षांशक छलाह 

@ राजीव रंजन मिश्र 
२२२१२ १२२ १२१

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