गजल-३४४
जकरा जेबाक से गुजरि जाय छै
पाछाँ दुनिया सभक बिसरि जाय छै
पाछाँ दुनिया सभक बिसरि जाय छै
फुइसक माया थिकहुँ जगत ई सगर
छाती पर मूंग ध' क' दररि जाय छै
छाती पर मूंग ध' क' दररि जाय छै
बेसी बजने कि कबिलौत चलै
मुहँ पर कारिख समय रगड़ि जाय छै
मुहँ पर कारिख समय रगड़ि जाय छै
अति तेहन ने खराब छी चीज जे
शीतल चाननसँ आगि पजरि जाय छै
शीतल चाननसँ आगि पजरि जाय छै
व्यवहारे आ विचार पहिचान थिक
से रहने दुसमनो नमरि जाय छै
से रहने दुसमनो नमरि जाय छै
अगबे आलोचना कँ राजीव की
सेहो मूङी खसा गरड़ि जाय छै
सेहो मूङी खसा गरड़ि जाय छै
२२२२ १२१२ २१२
®राजीव रंजन मिश्र
®राजीव रंजन मिश्र
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