Monday, October 27, 2014

गजल-३४९

देवी  जे नेहक दानी सन
भेटत के जगमे नानी सन

मोनक निर्मल नेहक निश्छल
अपरुप छवि झकझक चानी सन

संज्ञानी आ त्यागक मुरती
व्यवहारो अजगुत ज्ञानी सन

घर संतानक भरले पुरले
भागो जनि अनमन रानी सन

राजीवक लै गप नानीकेँ
सभदिनका छी ऋषि वाणी सन

२२२ २२ २२२
®राजीव रंजन मिश्र

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