Wednesday, October 8, 2014

गजल - ३३५

लोककेर आइ गजब काज धंधा भ' गेलै
माटि भेल साफ मुदा मोन गंदा भ' गेलै 

होइ छैक आम सभा भीड़ धरि खास सभटा
फूसि हाँकि बेस असरदार बंदा भ' गेलै 

कोन रीति आइ चलल कालकेँ खेल देखू
माय धीक देह परक छोट अंगा भ' गेलै 

भूख मारि गेल कते रास सपना निरीहक 
नाचबाक लेल करोड़ोक चंदा भ' गेलै 

आबि गेल काल पहर कोन राजीव ई जे
छोड़ि छाड़ि लाज हया लोक नंगा भ' गेलै 

२१२१ २११२ २१२२ १२२
®राजीव रंजन मिश्र

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