Wednesday, October 8, 2014

गजल-३२९ 

बुझा रहल चकोरकेँ जनि चान ल' लेलहुँ
कचोटि गेल मोन जेना प्रान ल' लेलहुँ

खुशी झलकि रहल अहाँकेँ बोल वचनमे
मुदा कहू किए हमर मुसकान ल' लेलहुँ 

अहाँक लेल छल जरूरी लोक जगतकेँ
तहँन किएक जे अहाँ दृज्ञान ल' लेलहुँ  

बताह भेल मोन अछि आ फाटि रहल हिय
अनेर गप्प आहि रे बा कान ल' लेलहुँ 

कहू तँ की कहू खहरि राजीव रहल छी
दया दरेग सभ बिसरि यै जान ल' लेलहुँ   

 १२१२१ २१२२ २११२२
@ राजीव रंजन मिश्र  

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