Wednesday, October 8, 2014

गजल - ३३२

जतरा मंगलमय सुखदायी हो
सभकेँ जीवनमे तरुणाई हो 

बाँचल ख़ूंचळ जे किछु छल ललसा
रत्ती कनमाँकेँ भरपाई हो

गलती सोची नै कनियो कखनो
नीकक सदिखन सुनवाही हो 

तूँ-तूँ हम हममे की हासिल
बेसी नै ज्ञानक दाबी हो 

सभकेँ राजीवक ढेरी ढाकी
शुभ विजयादशमीक बधाई* हो 

२२ २२२ २२२२
®राजीव रंजन मिश्र 

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