Monday, October 27, 2014

गजल-३५० 

यौ नेह जहि ठाँ जकरा भेल
दुक्खक पसाही अखरा भेल 

डाकक कहल जैं बिसरा गेल
नेहक शुरू तैं खतरा भेल 

नै कहि कते छी ककरा नेह
धरि नेह मूँहक फकरा भेल 

खुरचालि टाकेँ चलिते आइ 
ई नेह टुकड़ा टुकड़ा भेल 

राजीव नै बुझनुक ओ लोक
जै नेह खातिर लबड़ा भेल 

२२१२ २ २२२१
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३४९

देवी  जे नेहक दानी सन
भेटत के जगमे नानी सन

मोनक निर्मल नेहक निश्छल
अपरुप छवि झकझक चानी सन

संज्ञानी आ त्यागक मुरती
व्यवहारो अजगुत ज्ञानी सन

घर संतानक भरले पुरले
भागो जनि अनमन रानी सन

राजीवक लै गप नानीकेँ
सभदिनका छी ऋषि वाणी सन

२२२ २२ २२२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३४८

लोक लोककेँ भेँट करै छल एक दिवाली ओहो छल
एक एककेँ मोन मिलै छल एक दिवाली ओहो छल

छोट पैघकेँ पैर छुबय आ जेठ लगाबै छातीमे
गाम गाममे दीप बरै छल एक दिवाली ओहो छल

सभ निकलि कँ घूमै सगरो घर आंगन दरवज्जा सभकेँ
राति राति भरि लोक जगै छल एक दिवाली ओहो छल

भेँट घाँटमे नेह रहै आ स्वाद बताशा लाबामे
चाह पानि पर गप्प चलै छल एक दिवाली ओहो छल

ऊँक पातिके आगि धरौने बनबय उक्का लोली आ
दोग कोनमे खूब भँजै छल एक दिवाली ओहो छल

आहि आइ राजीव उठय अछि कोन बजर जे खसि परलै
नेह प्रेम लै लोक मरै छल एक दिवाली ओहो छल

२१२१२ २११२२ २११२२ २२२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३४७
दिआ बाती पर विशेष:

बिसरल गाम पर दू टा दीप जरा लेब
काजक ठाम पर दू टा दीप जरा लेब  

सीमा पर सिपाही जे जान अपन देल
तै गुलफाम पर दू टा दीप जरा लेब

चलि गेलाह जे लोकक खातिर दुनियाँसँ
तिनका नाम पर दू टा दीप जरा लेब
 
सभटा कष्ट छी लोकक मूँहे टा लेल
जीहक चाम पर दू टा दीप जरा लेब 

टटका आइ जे सेहो पुरना जेतै ग'
बुढ़बा भाम पर दू टा दीप जरा लेब 

हाँ राजीव बनि परने माय पिताजीक
पैरक धाम पर दू टा दीप जरा लेब 

२२२१२ २२२१ १२२१
®राजीव रंजन मिश्र
गजल - ३४६

दिवाली किछु एहन मनाबी हम सभ
विचारक ई दूरी मिटाबी हम सभ

चलू ने अन्हारक भगा दी शासन
विवेकक औ डिबिया जराबी हम सभ

जमानामे कतबो किए ने काँटे
गुलाबक फुलबारी सजाबी हम सभ

समय पर पूरय छै मनोरथ मोनक
सिनेहक टा गाछी लगाबी हम सभ

बहुत दिन बीतल हाथ की जे लागल
अमरखे नै जीवन गमाबी हम सभ

बनौलक जे राजीव दीया बाती
तकर किछु सेहंता पुराबी हम सभ

१२२ २२२ १२२ २२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३४५

समस्त मुखपोथिया परिवार, सखा बंधु, जेठ -श्रेष्ठकेँ धन्वंतरि त्रयोदशी अशेष मंगलकामना :

बरतन वासन आ खरिहान कीन लेब
काजक हे सभटा सामान कीन लेब

रोकत ककरा के आ काज कोन छैक
अपना लै सभटा दिअमान कीन लेब

अपने खातिर ई दुनिया बताह भेल
आहाँ सेहो गगनक चान कीन लेब

धनवंतरिकेँ आसिरवाद संग हौक
सुख दुख रहितो जन कल्याण कीन लेब

अपरुप लछमी संगे सरस्वतीक मेल
से बुझि गेने टा भगवान कीन लेब

छी राजीवक नेहौरा यैह टा समांग
यौ धनतेरस पर किछु ज्ञान कीन लेब

२२२२ २२२१ २१२१
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३४४ 

जकरा जेबाक से गुजरि जाय छै
पाछाँ दुनिया सभक बिसरि जाय छै

फुइसक माया थिकहुँ जगत ई सगर
छाती पर मूंग ध' क' दररि जाय छै

बेसी बजने कि कबिलौत चलै
मुहँ पर कारिख समय रगड़ि जाय छै

अति तेहन ने खराब छी चीज जे
शीतल चाननसँ आगि पजरि जाय छै 

व्यवहारे आ विचार पहिचान थिक
से रहने दुसमनो नमरि जाय छै

अगबे आलोचना कँ राजीव की
सेहो मूङी खसा गरड़ि जाय छै

२२२२ १२१२ २१२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल - ३४३

जिद अपन तँ ई रहै
आचरण सही रहै

बाजि लै हजार ओ
धरि अपन गली रहै

बुद्धि आ विवेककेँ
मेल सदिघङी रहै

आर होइ जे मुदा
दूर तनतनी रहै

राजिवक नजरि अलग
संग सरस्वती रहै

२१२ १२१२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३४२ 

कथी करब से करू
उघाड़ हेबे करू 

सिनेह मनुखत्वकेँ
तँ राड़ नै हे करू 

मजाक करबाक अछि
तँ यार संगे करू 

कुनो जरूरी तँ नै
नगर घिनेबे करू 

विचार राजीवकेँ
तहँन अहाँ जे करू 

१२१ २२१२
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३४१

सतकेँ दाबि खोहमे मुहँ दब्बू बनि गेल जमाना
मनलग्गूक ताकमे पिछलग्गू बनि गेल जमाना

नेन्ना पीबि नै रहल मायक छातीकेर सुधारस
तैँ ने रूसि गेल विधि दुधकट्टू बनि गेल जमाना

गलती बूझि सूझि सभ किछु अंठीयेलासँ रहत की
छोङल बुधि विवेक आ अँखिझप्पू बनि गेल जमाना

देबै दोष किछु ककर सभटा ई अपने करनी अछि
ठोकर खा कँ जग भरिक गछपक्कू बनि गेल जमाना

थेथरचालि त्यागि दी सभगोटे राजीव अपन सभ
बाँचब नै तँ कहबए सँढदग्गू बनि गेल जमाना

२२२१ २१२ २२२ २२१ १२२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३४० 

धरनी खहरल-चान खहरलै-खहरि रहल-जग-धीरे धीरे 
अपने उकटा-पाँचिमे पड़ल-हुकरि रहल-जग धीरे धीरे 

खन्नहि चाहिरल लोक चान पर खने उतरि धरनी पर उनटल 
अजगुत चरजा देखि क्षोभमे पजरि रहल जग धीरे धीरे  

आशीषे टा पाबि ठाढ़ छल उनटि कँ देखू अगिला पछिला  
तकरे खोंहिस छोड़ि देल आ नमरि रहल जग धीरे धीरे 

भाभट देखू कोन धैल जे धधा रहल युग धरि परतारल 
मायक हिय सन बात बातमे सिहरि रहल जग धीरे धीरे 

राजीवक छी साफ एक गप सदति सुपत करनीकेँ चलिते  
ककरो टा क्यउ नाम लेल आ सुमरि रहल जग धीरे धीरे  

२२२२ २१२१२ १२१२२ २२२२  
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३३९ 

मनुक्ख नै सुनैए मनुक्खक गप्प
अनेरकेँ करैए निरर्थक गप्प 

जखन जखन चलल चानकेँ चरचा त'
इयाद बड़ पड़ैए चकोरक गप्प 

बुढ़े पुरानकेँ संग टा भेटत ग'
बचल खुचल किछो सदविचारक गप्प 

रहत कि आब किछुओ जगतमे थीढ
रभसि रभसि कुथैए अकक्षक गप्प 

मरण हरण बुझा दैछ गुन राजीव
जिबैत खन बुझै सभ बताहक गप्प 

१२१२ १२२ १२२२१
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३३८

कतेक रास गप्प छै हिसाब एक टाक नै
सवाल एक लाख धरि जवाब एक टाक नै

सिनेह बाट पर चलल जतेक लोक आइ धरि
समाज संग देख ली बनाब एक टाक नै

नुका छिपीक खेल देख मोन तंग लोककेँ
सही हिसाबमे तँ रख रखाब एक टाक नै

किताब लीखि चारि टा कहत गुनी विशेष छी
हटत वयन परक मुदा नकाब एक टाक नै

कथी कहू विशेष बात तंग मोन राजिवक
मिठास बोल चालिमे जनाब एक टाक नै

१२१ २१ २१२ १२१ २१ २१२
®राजीव रंजन मिश्र

Thursday, October 9, 2014

गजल-३३७ 

हियक चाकरी कसि कँ मारैछ जान यौ
उधारक हँसी कसि कँ मारैछ जान यौ 

मिथाकेँ घरे घर सिनेहक बियौँत टा
निछोहे तँ ई कसि कँ मारैछ जान यौ 

बचाबथि प्रभू जे जगतकेर लोककेँ
तिनक दुसमनी कसि कँ मारैछ जान यौ 

जरूरी अबस बेस फरहर मिजाज धरि
कने धरफरी कसि कँ मारैछ जान यौ 

निमाहत कथी लोक राजीव आबकेँ
बुढ़ारी बड़ी कसि कँ मारैछ जान यौ 

१२२ १२२१ २२१ २१२
®राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, October 8, 2014

भक्ति गजल 

गिरधर जानल मीरा मातल छल
रसखानो सुधि बुधि सब वारल छल

जमुना काते कदमक तरुवर तर 
रासक अनुपम मेला लागल छल 

चन्ना चमकल गहगहमे पसरल
राधारमनक मुरली बाजल छल

ओ मंदहसन ई चंचल चितवन
पिपहिक धुन पर पायल नाचल छल

राधाकेँ नैनक काजर लगमे
कारी बदरी लाजे हारल छल

तै नेहक राजीवो छी रकटल 
जे गोपीकेँ कहियो भेटल छल

२२२ २२२ २२२
@ राजीव रंजन मिश्र 
कोजगरा पर विशेष :
गजल-३३६ 

रूप हुनक अपरुप सोहनगर मखान सन
लागि रहल अनमन कोजगराक चान सन

केश सघन कारीकेँ करतै बखान की
नाचि रहल बलखा खा नागिन उतान सन

बोल मधुर मिठगर जनि पिपही बजैत हो
चालि जेना हिरनीकेँ निश्छल कुदान सन

नेहक से धाही नै सम्हरल सम्हारने
धार उफनि रहलै जनि कमला बलान सन

हैत गठल कायाकेँ परतर अनेर नै
गाम घरक चकचक ओ आंगन दलान सन

तीर एना चलबथि ओ राजीव नैनकेँ
डोलय सेहन्ते ई छाती मचान सन

२११२ २२ २२२१ २१२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल - ३३५

लोककेर आइ गजब काज धंधा भ' गेलै
माटि भेल साफ मुदा मोन गंदा भ' गेलै 

होइ छैक आम सभा भीड़ धरि खास सभटा
फूसि हाँकि बेस असरदार बंदा भ' गेलै 

कोन रीति आइ चलल कालकेँ खेल देखू
माय धीक देह परक छोट अंगा भ' गेलै 

भूख मारि गेल कते रास सपना निरीहक 
नाचबाक लेल करोड़ोक चंदा भ' गेलै 

आबि गेल काल पहर कोन राजीव ई जे
छोड़ि छाड़ि लाज हया लोक नंगा भ' गेलै 

२१२१ २११२ २१२२ १२२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३३४

मोन थाकल माथ हारल की कहू की भेल अछि
आइ जगती सोच त्यागल चलि रहल धुरखेल अछि

टोकि जकरे टा दियौ से हाथमे लाठी उठा
कहि रहल जे टांग तोङब यैह बड बुझि गेल अछि

लोभ खातिर सभ बिसरि सत फूसिकेँ पँजिया रहल
फूसि सेहो हँसि रहल जे कोन सभ बकलेल अछि

एक दिस जग पूजि रहलै माए धी देवी बनल
आर दोसर कात कन्या गर्भमे मरि गेल अछि

गप कहब खहियारि भन्ने बारि दी राजीवकेँ
नारि खातिर नारि माचिस नारिये टा तेल अछि

२१२२ २१२२ २१२ २२१२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३३३

अहाँ केस आ हम कंघी छी
अहीँ आब जीवन संगी छी

ककर भेल काजक ई जगती
सभक संग सदिखन तंगी छी

सुनर नैन आ चंचल चितवन
मयुरपंख सन सतरंगी छी

बुझू आइ हम राजा नल आ
ऐल अहाँ बनि दमयंती छी

बनल प्रानप्रिय राजीवक जनि
सए जन्मकेँ संबंधी छी

1221 22 222
© राजीव रंजन मिश्र
गजल - ३३२

जतरा मंगलमय सुखदायी हो
सभकेँ जीवनमे तरुणाई हो 

बाँचल ख़ूंचळ जे किछु छल ललसा
रत्ती कनमाँकेँ भरपाई हो

गलती सोची नै कनियो कखनो
नीकक सदिखन सुनवाही हो 

तूँ-तूँ हम हममे की हासिल
बेसी नै ज्ञानक दाबी हो 

सभकेँ राजीवक ढेरी ढाकी
शुभ विजयादशमीक बधाई* हो 

२२ २२२ २२२२
®राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३३१ 

लाठी राखितो अहिंसक छलाह
सत झूठक प्रखर मिमांसक छलाह

संसाधन अछैत ओ शांतिदूत
देशी चीजकेँ प्रशंसक छलाह 

यौ कहनाइ बड सहज छै जनाब
सोचू कोन हाड़ मांसक छलाह 

तहिया लोक की रहै बड बताह
मानल जे सए शतांशक छलाह 

जेहन ओ छलाह जेहन छलाह
हमरे  आ अहाँक वंशक छलाह 

यौ राजीव मानि लेलक खराप
धरि जगती कहत अक्षांशक छलाह 

@ राजीव रंजन मिश्र 
२२२१२ १२२ १२१
बाल गजल

दुर्गा पूजामे हम नवका कपङा किनबै यौ
पीयर हरियर उज्जर भाटा रंगक लेबै यौ

रहतै ककरो कोनो तरहक टोका टाकी नै
पाँचो टा दिन घुरबै फिरबै मस्ती करबै यौ

पप्पा संगे गामक मेलामे जेबै सभ क्यौ
रसगुल्ला पेङा घुघनी सिंघारा खेबै यौ

दीदी वैंकी छोटू जे किछु लेता धरि हमरा
लाले ऊनक गोला चाही स्वेटर बुनबै यौ

जतराकेँ दिन राजीवक छी बड रुचिकर बाबू
आसिरवादी देता सभ क्यौ मंगल गेबै यौ

२२२२ २२२ २२२ २२२
®राजीव रंजन मिश्र
गजल-३३०

नै रहल किछु मोल सतकेँ फूसि बाजी जीत गेल
यौ कहू ने कोन खातिर छल्ह गांधी बीत गेल 

अछि उताहुल लोक तत जे सोह नै थिक सत्तकेर
के कहत जे भाइ सम्हरू घर दुआरिक भीत गेल 

छल बहादुर लाल शास्त्री जाहि देशक कर्णधार
ताहि देशक माटि पर पुरषार्थ लोकक तीत गेल 

मान बेचल शान हारल कर्म चालिक बात कोन
आइ देखू सभ बिसरि माँ भारतीकेँ गीत गेल 

बहि रहल राजीव शोणित देहमे सभकेँ वएह  
तैँ उठू आ भाइ सोचू कोन बैबे थीत गेल 

२१२२ २१२२ २१२२ २१२१
®राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३२९ 

बुझा रहल चकोरकेँ जनि चान ल' लेलहुँ
कचोटि गेल मोन जेना प्रान ल' लेलहुँ

खुशी झलकि रहल अहाँकेँ बोल वचनमे
मुदा कहू किए हमर मुसकान ल' लेलहुँ 

अहाँक लेल छल जरूरी लोक जगतकेँ
तहँन किएक जे अहाँ दृज्ञान ल' लेलहुँ  

बताह भेल मोन अछि आ फाटि रहल हिय
अनेर गप्प आहि रे बा कान ल' लेलहुँ 

कहू तँ की कहू खहरि राजीव रहल छी
दया दरेग सभ बिसरि यै जान ल' लेलहुँ   

 १२१२१ २१२२ २११२२
@ राजीव रंजन मिश्र  
गजल-३२८

जीवन बीत जाय धरि ठाम नै भेटै
ऐ ठाँ लोककेँ उचित दाम नै भेटै

सभदिन केर नीक बोली विचारक जे
ढंगक ओकरो तँ ईनाम नै भेटै

लाखे कैल गेल चेष्टा मुदा तैय्यो
लोकक मोन बीत भरि बाम नै भेटै

मंदिर केर जोह आ चाह मस्जीदकेँ
कत्तहु धरि रहीम आ राम नै भेटै

छै राजीव बेश अजगुत हुनक लीला
समुचित ग्यान टा सरेआम नै भेटै

22 2121 221 222
©राजीव रंजन मिश्र
गजल-३२७

सत गप्प मानि ली आबहुँ हे भाइ
नै होउ पातकी आबहुँ हे भाइ

हे आँखि कानकेँ राखू नै मूनि
नै भेल देर छी आबहुँ हे भाइ

धरनी तँ छोट छिन बामनकेँ डेग
चाही गवाह की आबहुँ हे भाइ

भगवान ओकरा बेटे देथुन्ह
कहनाइ छोरि दी आबहुँ हे भाइ

राजीव मोन जे कहलक छी नीक
से काज चट करी आबहुँ हे भाइ
२२१ २१२ २२२ २१
©राजीव रंजन मिश्र
गजल-३२६ 

जी रहल संसारमे से कसर सदिखन रहत 
हम रही वा नै रही गप हमर सदिखन रहत 

फूसिकेँ ढाठी कहू कोन छल काजक ककर 
सत्तकेँ हथियार धरि कारगर सदिखन रहत 

हाथ आ नै पैर तै बातकेँ चरचा कथी 
झूठकेँ फफियैब आ धर पकड़ सदिखन रहत 

बातकेँ बेसी बढ़ा होइ कोनो लाभ नै  
बेस जे तीरत तँ से दर-ब-दर सदिखन रहत 

यैह छी राजीव सत मानि ली बिनु तर्ककेँ 
नाप आ गजलक विधामे बहर सदिखन रहत 

२१२ २२१२ २१२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-३२५

घूमत फीरत नाचत अगरा कहतै दुर्गा पूजा छै
करतै सभटा झङकलहा आ कहतै दुर्गा पूजा छै

ढोलक पीटत चोंगा लगवा सातो दिनकेँ छुट्टीमे
फूहर देसी गीतक तङका कहतै दुर्गा पूजा छै

मैय्या बड खुश हेती सभ पर सोचे सभकेँ छी अतबे
पंडित काटत छागर भैंसा कहतै दुर्गा पूजा छै

बुढनेन्ना से बहकल सहकल बाते की नवतुरियाकेँ
कानय घर घर लक्ष्मी दुर्गा कहतै दुर्गा पूजा छै

राजीवो रहि गुमसुम देखल मनुखक सभ उतकिर्ना ई
देवी नामे अगता भगता कहतै दुर्गा पूजा छै

२२२२ २२२२ २२२२ २२२
©राजीव रंजन मिश्र