Friday, September 12, 2014

गजल-३१४ 

फूलक गमक भरल हो
जीवन सजल धजल हो

चमकी अहाँ नखत सन
गति मति सहज सरल हो

अगहनकँ मासमे जनि
पुरवा सरस बहल हो

बोली अहाँक मिठगर
आ बानगी चढल हो

गुन रूप शील संगे
गदगद हिया सबल हो

राजीव कामना जे
ऊँचाइ नित नवल हो
2212 122
©राजीव रंजन मिश्र

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