Thursday, September 4, 2014

गजल-३०४ 

बरद छल तँ ह'र ने छल
मुदा किछु कुग'र ने छल 

बड़ी कष्ट रहितो धरि
मनुख भेल त'र ने छल 

उचित बात कहबामे
धरेबाक ड'र ने छल 

तते भाइचारा जे
झगरबाक ग'र ने छल 

मनुख छल मनुख सनकेँ
मनुखकेर झर ने छल 

बिना दिव्य संस्कारक
तँ राजीव घ'र ने छल 
१२२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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