Friday, September 26, 2014

गजल-३२४ 

बड़की टाक धाप छैक
मोनक बड उताप छैक 

बूढ़ा छथि उनार भेल
बेटा भेल बाप छैक 

नीकक संग द्वंद केर
घुट्ठी धरि मिलाप छैक 

बचि कँ रहब महानुभाव
माहौले खराप छैक 

छी राजीव बूझि गेल
अहियो ठाम खाप छैक 

२२२ १२१ २१
©राजीव रंजन मिश्र

Thursday, September 25, 2014

गजल-३२३

जते ई सर्जना छी मनुखकेँ कल्पना छी
भने क्यौ बाजि दै किछु मुदा सत यैह टा छी

रहै ओहो जमाना कटै छल बाटमे दिन
जखन की आब देखू कते साधन बला छी

अनेरों दंभ फुइसक अपन आसन वसनकेँ
कि सभटा देल दैवक कथी किछु हम अहाँ छी

नदीकेँ धारमे वा पहारक पेटमे हो
मनुखकेँ डेग पहुँचल जगतमे सभ ठमा छी

उठौलक डेग भारत सफल अभियान मंगल
मुबारकबाद इसरो बहुत शुभकामना छी

उठू राजीव टारू अपन भाभटकँ जाजिम
कमी बस एक सदिखन मिथा अभ्यर्थना छी

122 2122 122 2122
© राजीव रंजन मिश्र
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" याद करते हुए:

हे वीर दिया तुम जला रहे हो
इक चिंगारी बन लहलहा रहे हो

औकात भला क्या रखे समंदर
गर नाविक स्वतंत्र हो बता रहे हो

हे रश्मिरथी हे उर्वशी रचयिता
नित सोये को भी जगा रहे हो

रोटी की कीमत स्वतंत्रता नहीं हो
कहकर रोटी को हरा रहे हो

हर भारतवासी झुका रहे सर
सच्चे अर्थों में राष्ट्रकवि कहा रहे हो

२ २२२२ २ १२१२ २
©राजीव रंजन मिश्र
गजल-३२२

बदलि रहल छै आब जमाना आर बदलतै देखब
शनै शनै व्यवहार बदलतै माथ निहुरतै देखब 

पघिल जहन छल गेल हिमालय पाबि किरन सुरुजकेँ
तहन किए नै मोन मनुखकेँ भाइ पघिलतै देखब 

जगा रहल चुचकारि प्रकृत ई गाबि पराती सोहर
भने बिलमि धरि एक समय ई लोक तँ जगतै देखब 

जनम दिवस पर राष्ट्रकविक शत बेर नमन छी हुनका
रहै कलममे मोसि भरल दिनकर तँ बिहुँसतै देखब

हुनक सही कहनाम छलै नै मोल चुकेतै रोटीक
रहत सदति खन वीर स्वतंत्रे दीप पजरतै देखब

उठा नजरि आ माथ चलथि धी चाहि रहल अछि मिथिला
बढा चढा दिअमान धिया सभ चान चहिरतै देखब

लखा रहल राजीव निकट ओ राति दिवस सुखकारी
गमकि उठत मिथिलाक नगर सभ गाम गमकतै देखब

१२१२ २२१ १२२ २११२ २२२ 
©राजीव रंजन मिश्र

Monday, September 22, 2014

गजल-३२१ 

बाप पितामह चान चढ़ल धरि पूत अनेरे छलकल जाय 
ताहि मनुखकेँ बाजू बाबू कोन हिसाबक मानल जाय 

हारि रहल छै निकहा आ सभ ठोकि रहल अधलाहक पीठ 
आर कते जे भोगत जगती सोचि हिया से हहरल जाय 

छोट उताहुल तेहन जे नै भान किछो मरजादाकेँ 
पैघ अपन नै राखल गरिमा ठोकि कहल फरियावल जाय 

हाथ त'रक छल गेले पहिने पैर त'रक सेहो टा जैत 
लोक मुदा नै चेतत करनी कोन हिसाबे टोकल जाय 

मोन कहै बुरिबक छी ने राजीव किए छी गुमसुम भेल 
माथ कहै बाजू खाहियारल घाव कते दिन झाँपल जाय  

२११२ २२२२२ २११२२ २२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३२०

ई जे मोनक जरब थिक
बाबू दुसमन गजब थिक

चुप्पे चापे रहब नित
जरि मरि अँचरी चढब थिक

निकहा लोकक सहज गुन
सोझाँ सोझी चलब थिक

जीवन जीनाइ ऐ ठाँ
जेना तीले बहब थिक

हाँ यौ अन्तिम घऱी धरि
जीवट राखब रहब थिक

जखने राजीव थमलहुँ
तखने जिबिते मरब थिक

2222 122
©राजीव रंजन मिश्र
गजल-३१९

बऱी गजब कँ बात छैक
विवेकशील कात छैक

चढल मिजाज राखबाक 
बहल नवल बसात छैक 

समाज राति पीठ ठोकि
मुकरि रहल परात छैक 

सुखा रहल फुलैल फूल
उदास गाछ पात छैक

निपटि जँ एक टा कँ लेब
तँ ठाढ आर सात छैक

विवेक राजीवक जजात
उछाह टा बुतात छैक 

1212 121 21
©राजीव रंजन मिश्र

Friday, September 19, 2014

गजल-३१८

अनुशासन हीन जीवन जीयब नै नीक गप
बुझबय ला खूब रास बाजब नै नीक गप

ई जानै छी अहाँ सभगोटे बढियाँ जकाँ
मजलिसकेँ शायरी बिनु राखब नै नीक गप

उरदूकेँ शायरी आ हिन्दीमे घोषणा
मैथिलीकेँ मंच परमे छाँटब नै नीक गप

जनता छै बुझि रहल सभ खेला हेर फेरक
अपने टा पीठ अप्पन ठोकब नै नीक गप

बजने राजीव बेसी लोको हँसबे करत
फुइसक सुर ताल परमे नाचब नै नीक गप

२२२ २१२२ २२ २२१२
©राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३१७ 

बढ़ियाँ अहाँक आइ काल्हि रंग ढंग अछि
के किछु कहत ग' मूँह दाबि लोक दंग अछि

रंगल मिजाज भोर साँझ बेश अछि चढ़ल
सहकल अनेर मोन माथ अंग-अंग अछि 

सीखू अहाँ पचास राग-भास नीक गप
धरि मैथिली कहू कतेक अंतरंग अछि 

छी मैथिलीक से कपार तेज की कहू
हिंदी बघारि तारबाक लेल जंग अछि 

हमरा अहाँ सनक उलाँक पूत भेल तैँ
राजीव मैथिलीक हाल भेल तंग अछि 

२२ १२१ २१२१ २१ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, September 16, 2014

गजल-३१६ 

गुनवान बनू गतिशील बनू
हे आब अहाँ नल नील बनू

जे ठोकि चलै आ खत्म करै
ताबूत मँहक से कील बनू

थिक बाट सहज नै सरिपहुँ धरि
हुलकैल कुकुर नै चील बनू

अक्लांत हिया नै शांत अडिग
तैँ खास कँ चिंतनशील बनू

राजीव रमनगर नेह भरल
नित मानसरोवर झील बनू

221 12 221 12
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, September 14, 2014

गजल-३१५

किछु नीको जे खराबे लागै
अपना सोचक दुआरे लागै  

ओना अपना हिसाबे सभकेँ
आनक आनन कनाहे लागै 

गुम छी दुनिया तँ बुझलक नै जे
बजने बेसी प्रचारे लागै 

बेसी बुझबाक दाबी बाबू
नै सहजे धरि अनेरे लागै 

बुझनाहर यैह सभदिन कहलक
कहनाहर धरि बताहे लागै 

सभटा राजीव निकहा अरजल
अधलाहा धरि कपारे लागै 

२२२२ १२२ २२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, September 12, 2014

गजल-३१४ 

फूलक गमक भरल हो
जीवन सजल धजल हो

चमकी अहाँ नखत सन
गति मति सहज सरल हो

अगहनकँ मासमे जनि
पुरवा सरस बहल हो

बोली अहाँक मिठगर
आ बानगी चढल हो

गुन रूप शील संगे
गदगद हिया सबल हो

राजीव कामना जे
ऊँचाइ नित नवल हो
2212 122
©राजीव रंजन मिश्र

Thursday, September 11, 2014

गजल-३१३ 

हजार लाखमे कदरदान बढत
कनी जँ ताकि देब दिअमान बढत

गमकि रहल गुलाबकेँ फूल अहाँ
जकर कपारमे तकर मान बढत

कुसुम पराग सन सरस रूप निरखि
लजा कँ बाट पर अपन चान बढत

आकाशमे चमकि रहल चान सनक
उतरि कँ आउ आर गुनगान बढ़त 

जते लिबा कँ माथ राजीव रहब
ततेक मान दान अहसान बढ़त  

12 1212 1221 12
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, September 10, 2014

गजल-३१२ 

इरषा करै छै घात अपने
साकिम करै उत्पात अपने 

से कालकेँ फेरी परै जे
माझो परै छै कात अपने 

जे संग नै छल लोक वेदक 
से उघि रहल अछि लात अपने 

अनका बुझाबै लोक बड धरि
क्यौ बुझि सकल ने बात अपने 

राजीव सदिखन जानि राखब
फटियेबमे थिक मात अपने

२२१२ २२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
“भोज"

भोज रे भोज
कहिया हेबह सोझ
बारहो मॉस तीस दिन
तौँही बोझक बोझ  

गाम गाम नगर नगर
पँहुचल तौँ डगर डगर
तोरे टा लेल भ' रहल
चारू दिस उपरोझ 

टेढ़ टाढ सोझ साझ
सभटा चाही साज बाज
के छोट आ पैघ के
सभठाँ चलल तोरे राज 

बियाह जनउ श्राद्ध कर्म
तोरा बिनु नै कोनो मर्म
तोरा बिनु कि कखनो बाबू
निमहल ककरो लौकिक धर्म

नेन्ना जनमल तखनो तौँ
बाप मरल ताहूमे तौँ
करजा ल' क' काज निमाहल
छोङलहक ने तैय्यो तौँ

मोनक अछि सवाल धरि
सुनिते लाजे जेबह गरि
अंदाज छल कि कखनो तोरा
भ' जेबह तौँ एहन नमरि 

हौ बाबू तौँ भाभट समटह
तखने तोरो शान निमहतह
तोरो मानत लोक विशेष
चर्च करत आ खनहन रहतह

@ राजीव रंजन मिश्र
कोलकाता

Monday, September 8, 2014

 गजल-३११ 

दी प्रभू अतबे कमाइ हमरा
सत उचित सदिखन फुराइ हमरा

दै खऱरि सभटा खरापकेँ जे
भेटि जै बस ओ सलाइ हमरा

लाभ आ नुकसानकेर टा गप
कहि रहल दुनिया कसाइ हमरा

नीक बा बेजै अहाँक जनतब
हम कथी दस टा बुराइ हमरा

कृष्ण टा राजीवकेँ सहारा
देत की जगती विदाइ हमरा

212 22 121 22
© राजीव रंजन मिश्र

Sunday, September 7, 2014

गजल-३१० 

गजलकेँ गीत कहि देता
अनर्गल प्रीत कहि देता 

दिगरकेँ फूसि आ अनढन
अपनकेँ जीत कहि देता 

हुनक नै ठीक थिक किछुओ
कथीकेँ तीत कहि देता 

चलत जे संगमे तकरे 
रमनगर गीत कहि देता 

ई मैथील श्रेष्ठ छथि बाबू
हमहिँ टा हीत कहि देता

लिबेबै माथ तखने टा
अहाँ नवनीत कहि देता

करब राजीव किछु नवका
तँ बुरि छी मीत कहि देता 

१२२ २१ २२२
©राजीव रंजन मिश्र
गजल-३०९ 

बहुत नादान छै खुनिया हमर
हमर धरि प्रान छै खुनिया हमर

बऱी कोमल मधुर मिठगर सुरक
तँ छेऱल तान छै खुनिया हमर

गमक फूलक चमक सूरूज सनक
सुशीतल चान छै खुनिया हमर

सगर दिस हाय तौबा मचि रहल
मुदा अनजान छै खुनिया हमर

बुझल राजीव छै सभकेँ सगर
सुवासित पान छै खुनिया हमर

*खुनिया =कातिल
12 2212 2212
©राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३०८ 

शत बेर नमन छी सभ शिक्षककेँ
जे जीब सिखा देला जीवनकेँ 

उपकार बड़ी थिक हे विद्वतगण
नै ऋण सधत तम हरनाहरकेँ 

आभार अहाँकेँ मानै सदिखन
दै मोन गवाही चित अर्पणकेँ 

छै आइ जमानामे किछुओ जे
से छैक बँचल कारण शिक्षणकेँ 

जे देल जगतमे जीबाकेँ गुन
राजीव सुमरि ली तै गुरुवरकेँ 

२२१ १२२२ २२२
©राजीव रंजन मिश्र

Thursday, September 4, 2014

गजल-३०७ 

कतहु रौदी कतहु उमरल नदी छै 
मनुखकेँ जिंदगी की जिंदगी छै 

कहै सभ थिक मनुख बुधियार प्राणी 
मुदा ई बात की कनियो सही छै 

रहल अछि जीबि सभ कहुना कँ जीवन 
कथी ककरा गरज जे भेल की छै 

उताहुल सभ सगर धरि भान नै किछु 
कहत ई बात के जे की कमी छै 

कतह राजीव गेलै बुधि मनुखकेँ 
कथी लै शानमे सभ सदि घड़ी छै 

१२२ २१२ २२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३०६ 

ओ खोज नै कैला कहै छथि हम बिसरि गेलहुँ
घुरियो कँ नै तकला कहै छथि हम बिसरि गेलहुँ 

हम ठाढ़ नित सदिखन रही सुनबाक खातिर धरि
दू शब्द नै कहला कहै छथि हम बिसरि गेलहुँ 

जखने कहल किछुओ तँ ओ बस कान कुकुऔला
नै आइ धरि सुनला कहै छथि हम बिसरि गेलहुँ 

कहबाक खातिर ढेर ढाकी नेह छल हुनको
धरि रोकि नै सकला कहै छथि हम बिसरि गेलहुँ 

राजीव अछि अपसोच अतबे आइ हमरा ओ
बुझियो कँ नै बुझला कहै छथि हम बिसरि गेलहुँ 
२२१ २२२ १२२ २१२ २२
© राजीव रंजन मिश्र
गजल-३०५ 

सिनेहक अपन किछु कने दाम लेलक
बजा आइ फेरो हमर गाम लेलक

सुनल जे हिया दाइकेँ शोर पारब
हमर देह चटदनि सरंजाम लेलक

विदा भेल छी फेर अपन माटिकेँ दिस
अपन क्यौ हमर पुनि हमर नाम लेलक

भने लाख काजक परल हो पसाही
पहिला जगह धरि धरा धाम लेलक

जहाँ धरि सिनेहक तँ राजीव गप थिक
जही ठाम भेटल तही ठाम लेलक
1221 22 12 2122
© राजीव रंजन मिश्र 
गजल-३०४ 

बरद छल तँ ह'र ने छल
मुदा किछु कुग'र ने छल 

बड़ी कष्ट रहितो धरि
मनुख भेल त'र ने छल 

उचित बात कहबामे
धरेबाक ड'र ने छल 

तते भाइचारा जे
झगरबाक ग'र ने छल 

मनुख छल मनुख सनकेँ
मनुखकेर झर ने छल 

बिना दिव्य संस्कारक
तँ राजीव घ'र ने छल 
१२२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र