Tuesday, August 5, 2014

गजल-२९५ 


आबिये गेल इयाद हुनकर 
हिय कना गेल विषाद हुनकर 

चान ताराकँ अपन बुझल धरि 
हम तँ छी भेल दियाद हुनकर 

साँस दू चारि भरल कि नै बस 
लगचिया गेल मियाद हुनकर

हम रही गाम घ'रक बटोही 
आ बनल गेह रियाद हुनकर 

चलि रहल नित मचा क' विर्रो 
सदिखनक बात विवाद हुनकर 

आह राजीव बिसरि सकल नै
थोड़बो काल निनाद हुनकर 

२१२ २१ १२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment