Monday, August 4, 2014

गजल-२९४ 

दिन तँ कहुना बीत गेलै रातिकेँ फेरी पड़ल छै
पी कँ शोणित गेल रौदी बाढिकेँ फेरी पड़ल छै

कर्म देखू आइ लोकक कोन अजगुत रूप धैलक
खेत आने जोति रहलै आरिकेँ फेरी पड़ल छै

जे सजा ओ काटि रहलै दंड ओ छी कोन करमक
कोन कारन तजि घराड़ी जाइकेँ फेरी पड़ल छै

बोल मिठगर बाजि नेताजी दनादन भागि पड़लै 
लोक हक्कारोस कानल पानिकेँ फेरी पड़ल छै 

हाल जे छै तै हिसाबे यैह टा राजीव लागल
किछु टका लै वोट देलक ताहिकेँ फेरी पड़ल छै

2122 2122 2122 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

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