Thursday, August 28, 2014

गजल-३०३ 

हुनक हँसनाइ जनि चूड़ी खनकि उठलै
कतहुँ खड़िहानमे कोयल कुहकि उठलै

हिया हरषल सुनल जे बोल ओ मिठगर
हुलासे मोन आ गत्तर फरकि उठलै

गठल काया कमल कचनाड़ सन तन्नुक
अंगैठी मोऱमे अंगिया मसकि उठलै

झलक बस एक टा ओ रूपकेँ पबिते
अमावस रातिमे चन्ना चमकि उठलै 

जही बाटे निकलि राजीव ओ गेलथि 
सुवासे बाट ओ महमह गमकि उठलै 

1222 1222 1222
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment