Wednesday, August 20, 2014

गजल-२९९ 

अपनौतियोमे आब ओ मजलिस कहाँ रहलै
तकरा बना राखब सभक कोशिश कहाँ रहलै 

जकरा मनुखमे नेह आ मनुखत्वकेँ ज्ञानों
तकरा मनुख बूझत तकर बेसिस कहाँ रहलै 

कममे जते छल लोक खुश ततबे तकर उनटा
सभटा सुखक रहितो गठल चेसिस कहाँ रहलै 

मौसम बदलि जे गेल फेरो छलै घूरल
धरि लोक नै घुरलै तँ की खोंहिस कहाँ रहलै 

परिवार पाछू एक आधे टीक रखने अछि
राजीव सरिपहुँ सदगुणक वारिस कहाँ रहलै 

२२ १२२२ १२२२ १२२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

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