Saturday, August 2, 2014

गजल-292

नै बदरी नै धार जनै छै
पोसब पालनहार जनै छै

महिरम गाछी खेतकँ चासक
अगबे टा रखबार जनै छै

डोंगी कोना पार उतरतै
मलहा आ पतवार जनै छै

बैसल ठाँ जे बात बनाबै
से खाली हूंकार जनै छै

छाती नै राजीव उतानू
सभकेँ सभ व्यवहार जनै छै

222 221 122
© राजीव रंजन मिश्र

No comments:

Post a Comment