Thursday, August 14, 2014

गजल-296

हाथमे हाथ ओ अपन टेका जइतए
मोनकेँ जोह आ जरब मेटा जइतए 

मिठ मधुर बोल आ झुकल पिपनीकेँ बले  
आगियो पानि सन तुरत सेरा जइतए 

दान जे देल जा रहल मुइला बादमे
जीबिते खइतए तँ सभ मोटा जइतए 

चालि लोकक तँ भेलए घिरनित एहने
जे लजा लाज आ परा विधना जइतए  

कोन राजीव नेहकेँ मोजर जे रहल 
से जँ किछु रहितए तँ ओ कोना जइतए 

२१२ २१२ १२२२ २१२
© राजीव रंजन मिश्र

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