Thursday, July 24, 2014

गजल-२८३ 

माँर पसा पीबैछ माए 
पेट अपन काटैछ माए 

धी पुत लै नित नीक निकुत* 
आँखि बचा राखैछ माए   

नेह भरल ममताकँ आँचर 
तानि सदति झाँपैछ माए 

चोट लगै धी-पुतकँ कनियो  
नोर खसा कानैछ माए 

तीन पहर ताकैछ टुकटुक
एक पहर सूतैछ माए

दूर रहौ वा लग मुदा नित 
नीक सखा मनबैछ माए  

दोसर के सहतै ग' जगमे 
बात जते सहिलैछ माए

पूत हियक राजीव बूझल 
माए तँ तैँ कहबैछ माए 

२११२ २२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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