Tuesday, July 8, 2014

गजल-२७१ 

थोड़बो लाज लागल हुए तँ सुधारू बानिकेँ 
जैतुक गर्भ मारब बनल अछि काँची आँखिकेँ 

ओ गरिया कँ चलि गेल सभकेँ बेटी आ बहिन 
यौ सरकार आबो जगाबू अपना आनिकेँ 

हे माँ मैथिलीकेर सप्पत जे आबो अहाँ 
नै दोषी बनू जानकी सन धी सुकुमारिकेँ 

जैं सभ एखनो बुझि धियाकेँ रहलौँ भार यौ 
तैँ टा कानि मिथिला रहल बिना* सुनवाहिकेँ 

मिथिलानीसँ राजीवकेँ नेहोरा यैह टा 
आगू आउ आ हे बचाबू मैथिल नारिकेँ 

२२२१ २२१२ २२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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