Friday, July 4, 2014

गजल-269

सदति उचित उत्तर बनी जटिल कठिन सवाल नै
सहज सरल जा धरि रहब उठत नजरि मजाल नै

रहल अडिग बेदाग जे बढल तकर तँ मान नित
कनी मनी लै कष्ट धरि पऱल मुदा अकाल नै

विवेककेँ जे तेज से रहल चढल बढल सदति
धरत तकर की हाथ लोक काल आ कराल नै

विचार बलकेँ ठीक राखि जीत जैब एक दिन
परिश्रमीकेँ लेल किछु अकाश आ पताल नै

चलत मनुख जे बाट घाट आँखि कान फोलि नित
कतहुँ तखन राजीव ओ हैत फेर हलाल नै

1212 2212 1212 1212
 © राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment