Friday, July 25, 2014

गजल-284

देरसँ आ किछु बिलमि कँ
धरि असर हैत जमि कँ

रंग हयौ मेहदीक
तान धरै छैक थमि कँ

लोक गजल गुनगुनैत
बैस कँ आ बेस रमि कँ 

हारि कँ नै कात हैब
डेग ध'रब बाट गमि कँ 

माँझ दँ राजीव जैब
ठाढ़ रहब नै सहमि कँ  
२११२ २१२१
© राजीव रंजन मिश्र

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