Sunday, July 13, 2014

गजल-२७५ 

झौँसल मुहँ झाँपि राखी हम सभ
सभकेँ सभ पैघ पापी हम सभ 

लीखब नै मैथिली दू आखर
ठोकी धरि बस छाती हम सभ 

बिसरल छी बोल आ भाषाकेँ
धरकटकें कान काटी हम सभ 

मिथिलाकेँ लोक छी मैथिल छी
आबहुँ टा मोन पारी हम सभ 

आबो राजीव मैथिल मिलि-जुलि 
मिथिलाकेँ गीत गाबी हम सभ 

२२२ २१२ २२२
© राजीव रंजन मिश्र

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