Thursday, July 31, 2014

गजल-२९१ 

मजा अमीरीमे नै फकीरीमे बेसी
सजा गरीबीमे नै अमीरीमे बेसी

बुझब सुनब कम्मे धरि बनब बड़का काबिल
सरासरी गदहापचीसीमे बेसी

चलल जकर घर नै आ सुनल जकरा घर नै
तकर भेटत नाम यौ कमीटीमे बेसी

जहाँ चढ़ा लेलक फेर मोजर की ककरो 
अनेर बमदलकी एक शीशीमे बेसी

मजा सजाकेँ राजीव चिंता के करतै
सजा रहल सपना रईसीमे बेसी

12 1222 2 1222 22
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, July 30, 2014

गजल-२९० 

सुनूँ ने सुनूँ ने यै प्रियतम सुनूँ ने 
कथी कहि रहल जे ई मौसम सुनूँ ने 

बरसि जे रहल अछि ई सौनक फुहारा 
तकर धुन नचा देलक छमछम सुनूँ ने 

छी* मधुश्रावनीकेँ ई बेला रमनगर 
पिहानी सिनेहक टा अनुपम सुनूँ ने  

सजल फेर झूला छै यमुनाकँ कातें 
मयुर आ पपीहाकेँ सरगम सुनूँ ने 

सगर फूल पसरल छै गमगम सुवासित 
मधुप सन उताहुल भेलौँ हम सुनूँ ने 

समौने अहीँकेँ छी राजीव हियमे  
अहीँमे समायल छी हरदम सुनूँ ने 

* तेसर शेरमे एक टा दीर्घकेँ,लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि। 

१२२ १२२ २२२ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-२८९ 

दुआँ बनि दवाइ काज करै
खुदा नै खुदाइ काज करै

जगतकेँ हिसाब यैह रहल
कि अगबे भलाइ काज करै

जे थिक जवाबदेह तकर
उचित कारवाइ काज करै

मुतत लोग आगि बेस मुदा
असलमे सलाइ काज करै

कि राजीव सोच ञान जरल
मनुख बनि कसाइ काज करै

12 2121 2112
© राजीव रंजन मिश्र
गजल-२८८ 

एक दिस साओन रमनगर रमजान दोसर दिस
एक तरफ श्रीकृष्ण मुरारी आ चान दोसर दिस

भाइ सभकेँ ईद मुबारक ईदी मुबारक हो
नव बियाहलकेर चढल हो दिअमान दोसर दिस

हो सगर सुख शांति हियामे आ नेह पहिने सन
आपसी सद्भाव रहै आ नित ध्यान दोसर दिस

राग छोड़ू राम रहीमक छै एक यौ दुन्नू
पाक छै अल्लाह तँ ततबे भगवान दोसर दिस

संगमे राजीव रहै मिलि आवाम ऐ देशक
ई जगत हो एक तरफ हिंदुस्तान दोसर दिस

२१२ २२१ १२२ २२१ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

Monday, July 28, 2014

गजल-२८७ 

जनता जनार्दनकेँ चिन्ता उपार्जनकेँ
बेहाल कैलक धुन पेटक समार्जनकेँ 

सुनतै कथी आनक पलखैत ककरा छै
बचलै तँ काजे टा अगबे धनार्जनकेँ 

छै बाट धरमक जे सेहो कहाँ सुच्चा
सभ पाप हेतै धरि शिक्षा चिदार्पणकेँ 

लागल अनेरेकेँ सभ वाहवाहीमे
चाहत मुदा निकहा दिनकेँ पदार्पणकेँ 

राजीव कलिकालक अजगुत असरि बाबू
हीरा बदलि सभ लेलक चीज कार्बनकेँ

२२१ २२२ २२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-२८६ 

खून शोर पारैछ जमि कँ
माथ मोन फारैछ जमि कँ

तेज भाग रहलै तँ खूब
रास रंग धारैछ जमि कँ

बुधि विचार धाकड़ अछैत 
राज पाट हारैछ जमि कँ

कर्महीन सभदिन अभाग 
जानि बुझि हकारैछ जमि कँ

कैल-धैल राजीव लोकक
लारि चारि मारैछ जमि कँ

२१२१ २२१ २१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, July 25, 2014

गजल-२८५ 

सीमान पर जे छै सिपाही
से देशकेँ बचबै सिपाही


छै प्रानकेँ बाजी लगौने
हँसिते गला कटबै सिपाही

जे काटि दै बा कटि मरै छै
से वीर टा कहबै सिपाही

कखनो तँ मायक दूधकेँ आ
नै माटिकेँ लजबै सिपाही

नित नागरिककेँ चैन भेटय
माहौल से बनबै सिपाही

मोहताज रहि सद्भावनाकेँ
गुमनाम रहि जी लै सिपाही 

आभार नै राजीव अगबे
पहिचान से मांगै सिपाही 
२२१२ २२ १२२
© राजीव रंजन मिश्र
गजल-284

देरसँ आ किछु बिलमि कँ
धरि असर हैत जमि कँ

रंग हयौ मेहदीक
तान धरै छैक थमि कँ

लोक गजल गुनगुनैत
बैस कँ आ बेस रमि कँ 

हारि कँ नै कात हैब
डेग ध'रब बाट गमि कँ 

माँझ दँ राजीव जैब
ठाढ़ रहब नै सहमि कँ  
२११२ २१२१
© राजीव रंजन मिश्र

Thursday, July 24, 2014

गजल-२८३ 

माँर पसा पीबैछ माए 
पेट अपन काटैछ माए 

धी पुत लै नित नीक निकुत* 
आँखि बचा राखैछ माए   

नेह भरल ममताकँ आँचर 
तानि सदति झाँपैछ माए 

चोट लगै धी-पुतकँ कनियो  
नोर खसा कानैछ माए 

तीन पहर ताकैछ टुकटुक
एक पहर सूतैछ माए

दूर रहौ वा लग मुदा नित 
नीक सखा मनबैछ माए  

दोसर के सहतै ग' जगमे 
बात जते सहिलैछ माए

पूत हियक राजीव बूझल 
माए तँ तैँ कहबैछ माए 

२११२ २२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-282

बैसल छी गुमसुम फुरा नै रहल किछु
बीतल जे बचपन मजा नै रहल किछु 

धानक ओ आँटी कि खेतक मड़ैय्या 
घुरि फिरि जे ताकी सखा नै रहल किछु 

आमक ओ टिकुला कि थुर्री लतामक
अरनेबा झक्खा कहाँ नै रहल किछु

गामक ओ मैय्याँ कहाँ आइ गेलै
कचड़ी आ झिल्ली बना नै रहल किछु 

भेटल ई राजीव जीवन सुखक धरि
जिनगीमे कनियो बुझा नै रहल किछु 

२२ २२२ १२२ १२२
© राजीव रंजन मिश्र

Monday, July 21, 2014

गजल-२८१ 

धरनीकँ छोड़ि दुनियाँ असमान ताकि रहलै
बुरिबक जकाँ सगर सभ नित चान ताकि रहलै

माए खुआ चलल सोहारी अपन मुहँक धरि
धी पुत बिसरिकँ माँकेँ भगवान ताकि रहलै

नै दान देल कहियो कैलक धरम करम नै
सुख चैनकेँ मुदा सभ करमान ताकि रहलै

देखल अही जगतमे जे दागि देल सभकेँ
से आइ आप खातिर अहसान ताकि रहलै

दर दर भटकि रहल छै सतकेर टोहमे सभ
राजीव भेल सत बड़ झुझुआन ताकि रहलै

2212 122 221 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, July 20, 2014

गजल-२८० 

खेती करै छी बेर बेर 
कटनी करै छी बेर बेर 

गिट्टी पजेबा जोड़ि तोड़ि 
गँथनी करै छी बेर बेर 

अनमोल थिक ई नेह तैँ तँ 
संगी करै छी बेर बेर 

दुख सुख मनुखकेँ बाँटबाक 
गलती करै छी बेर बेर 

विधना अहीँ पर क्षार भार 
विनती करै छी बेर बेर 

मानय अपन छी दोष एक 
नेकी करै छी बेर बेर 

राजीव नै धरि थिक मलाल 
जे की करै छी बेर बेर 

२२१२ २ २१२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, July 19, 2014

। श्रीमते रामानुजाय नमः।।

झूला भजन -४ 

चलू हे सखी शोभा आइ निहारी 
झूलि रहल राधा संग माधव 
निधिवनमे गलबँहियाँ डारी 
चलू हे सखी ……. 

नन्दनंदन संग बृषभानुनंदनी  
झुला रहल सखियन सभ प्यारी 
चलू हे सखी ……. 

चानन पटरी रेशम डोरी 
झूला अजब गजब सुखकारी 
चलू हे सखी ……. 

यमुनाकेँ जल कलकल छलछल 
गाछ कदम तर झूला डारी 
चलू हे सखी ……. 

मोर पपिहरा भौँरा नाचल 
नाचि रहल राधा गिरधारी 
चलू हे सखी ……. 

अजगुत छँटा चढ़ल साओनकेँ 
लखि लखि विस्मित छथि नर नारी 
चलू हे सखी ……. 

ताल सरोवर जल अप्लावित 
सुभग सुवासित क्यारी-क्यारी 
चलू हे सखी ……. 

धरनी चान तरेगन उमड़ल 
बारल सभटा सुख ब्रजनारी 
चलू हे सखी ……. 

शोभा अपरूप जनि वैकुण्ठक 
निरखि निरखि राजीव बलिहारी  
चलू हे सखी ……. 

@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, July 18, 2014

गजल -२७९ 

मिथिलाधाम महान यौ
थिक बड़ उँचगर मान यौ


गाछी खेतक शानमे
लागल सगरो चान यौ


भेटय ऐ ठम पाग आ
घर घर पान मखान यौ


कोसी कमला संगमे
निरमल धार बलान यौ


हिंदू शंख फूकि रहल
मियाँ* देल अजान यौ 


पाहुन बनि कँ जतह पहुँच
गेला श्री भगवान यौ  


छी राजीव हमर सभक
मिथिला मैथिल प्राण यौ


* पाँचम शेरमे एकटा लघुकेँ दिर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि। 
2221 1212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, July 17, 2014

गजल-२७८ 

एक मिसिया टा मुस्किया देने 
आँखि लाजे टा किछु झुका देने 

चर्च रूपक छल राति मजलिसमे 
एक झलकी टा बस लखा देने 

चानकेँ मोजर चांदनी बुझलक 
आन के बूझल बड़ बुझा देने 

चालि मारल आ बैन मोहल हिय 
बाण मारुक जे छल चला देने 

बाट जोहल राजीव जिनकर सभ 
ओ तँ हमरे टा छल पता देने 

२१२२२ २१२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, July 16, 2014

गजल-२७७ 

हे देह धरि सिहैक जाइ छैक 
बदरी जखन छलैक जाइ छैक 

बारीकँ साग चारि बुन्न पाबि 
बड़ सोन्हगर गमैक जाइ छैक  

कखनोकँ माति जैब तेहने कँ 
जे डाँर से लचैक जाइ छैक 

मोनक कि दोष पाबि नेह धार 
बतहा जकाँ सहैक जाइ छैक 

राजीव भांग लाजवाब चीज 
खेने हिया फरैक जाइ छैक 

२२१२ १२१ २१२१   
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, July 15, 2014

गजल-२७६ 

आगि अछि लागल एहन कोमल करेजामे
की कहब ककरा जे किछु पूछत जिगेसामे

ताकमे सत्तक टा औनाएल छी एना
जी रहल छी हम जेना माछी गिलेबामे

आब जुनि ताकब खेसारी खेत पर हमरा
जाउ ने भेटत नै किछु हमरा मनेबामे

के सुनत आ सुनि मोनक अहलादकेँ बूझत
जानि नै लागत केहन हरुआ कहेबामे

जुनि करब चरचा कोनो राजीवकें नामक
काँट छी देखब गरि नै जै नाम लेबामे 

२१२२२ २२२२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, July 14, 2014

मैथिली हजल :एक प्रयास 

हम अपना आपमे बड़का साहित्यकार छी 
कुम्हारक चाक पर गढ़ने लोकक कपार छी 

गानल दिन भेल अछि एखन चुपचाप दम धरू 
पुश्तैनी लेखनीकेँ देखल हम पसार छी 

भोरुकबा सूर्ज हम हमहीं चान रातिकेँ 
हमहीं साहित्यकेँ मंदिर हमहीं मजार छी 

नै बाजू बेस चढ़ि हमरा संगे किएक जे 
सभटा सभ पैघ हाकिम दियादेकँ* सार छी 

रहने राजीव बड़ फैदा हमरा पछाड़मे 
हमरे टा हाथमे एकडमिक क्षार भार छी  

२२२ २१२ २२२२ १२१२ 

* एक टा लघुकें दिर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि 
** मतलाक मिसरा श्री राम कुमार झा जीसँ पैंच मांगि लेने रही। 

@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, July 13, 2014

गजल-२७५ 

झौँसल मुहँ झाँपि राखी हम सभ
सभकेँ सभ पैघ पापी हम सभ 

लीखब नै मैथिली दू आखर
ठोकी धरि बस छाती हम सभ 

बिसरल छी बोल आ भाषाकेँ
धरकटकें कान काटी हम सभ 

मिथिलाकेँ लोक छी मैथिल छी
आबहुँ टा मोन पारी हम सभ 

आबो राजीव मैथिल मिलि-जुलि 
मिथिलाकेँ गीत गाबी हम सभ 

२२२ २१२ २२२
© राजीव रंजन मिश्र

Saturday, July 12, 2014

भक्ति गजल-14
गुरू पुर्णिमाक सुअवसर पर गुरू भगवानक सुमिरन करैत प्रेषित अछि एक गोट भक्ति गजल,जय श्रीमन्नारायण :

गुरू किरपाकेँ नै थिक सिमान यौ
पुरब पश्चिम बा उत्तर इशान यौ

मनुख जीवन छी सुख दुखकँ खेल आ
जनम जन्मक टा झिक्का तिरान यौ

गुरू सरिपहुँ टा अपने हिया थिकहुँ
कथी डाक्टर इंजिनियर किसान यौ 

करू गुरुवरकेँ गुनगान मान तजि
परत कोनो नै कालक निसान यौ

मिटत सबटा दुख दारुन कलेष आ
छुटत जीवनकेँ कुटिया पिसान यौ

गुरू वैष्णव थिक गोविंद नाम मणि
सहज लागत वैकुंठक ठिकान यौ

बुझल अनमन टा राजीव बात जे
गुरू किरपा थिक पुष्पक विमान यौ

1222 222 1212
© राजीव रंजन मिश्र

Thursday, July 10, 2014

गजल-२७४ 

ई जगती बीहड़ जंगल थिक 
गाछी बिरछी जलमंडल थिक 

ककरो नै भेलय क्यौ जगमे   
अपने मोनक टा संबल थिक

अगबे फुइसक दौगाभागी 
अनढनकेँ ठानल दंगल थिक
 
मोनक टा सुनलक माथक नै 
नै मानल जे हिय चंचल थिक 

मोटा नै बेसी राजीवक 
लोटा छिपली आ कंबल थिक 

२२२ २२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-२७३ 

घर घराऱी बाँटि लेलक
खेत कोठी बाँटि लेलक

चाहमे लोलुप अनेरक
वाहवाही बाँटि लेलक

चारि दिनकेँ जिंदगीमे
लोक थारी बाँटि लेलक

नै सकल क्यौ बाँटि सुख दुख
धरि तबाही बाँटि लेलक

माय बापोकेँ कमासुक
पूत पापी बाँटि लेलक

लोक बऱ राजीव निरघट
पाँच काठी बाँटि लेलक

2122 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-272

एखन की भेल हँ एखन आर हएत
हाथक नै पैरो तरका पार हएत

लागल रहू चम्मच बेलन सभकेँ संग
जे वोट जितला पर धारोधार हएत

ई बादमे टरटर कैने बेंग जकाँ कि
घुरियो कनी देखत आ रखबार हएत

छल यैह टा बाँचल भरिसक भजार
गरियैल जनसाधारण देखार हएत

यौ जे ननू से छल गर्भहिँसँ ननू भ'
राजीव ओ छीनत जे बुधियार हएत

2212 2222 21121
© राजीव रंजन मिश्र

Tuesday, July 8, 2014

गजल-२७१ 

थोड़बो लाज लागल हुए तँ सुधारू बानिकेँ 
जैतुक गर्भ मारब बनल अछि काँची आँखिकेँ 

ओ गरिया कँ चलि गेल सभकेँ बेटी आ बहिन 
यौ सरकार आबो जगाबू अपना आनिकेँ 

हे माँ मैथिलीकेर सप्पत जे आबो अहाँ 
नै दोषी बनू जानकी सन धी सुकुमारिकेँ 

जैं सभ एखनो बुझि धियाकेँ रहलौँ भार यौ 
तैँ टा कानि मिथिला रहल बिना* सुनवाहिकेँ 

मिथिलानीसँ राजीवकेँ नेहोरा यैह टा 
आगू आउ आ हे बचाबू मैथिल नारिकेँ 

२२२१ २२१२ २२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, July 7, 2014

भक्ति गजल -13

निज चरण सेवामे टा आसक्ति दी मुरारी  
दासकेँ निर्मल आ निश्छल भक्ति दी मुरारी 

बस अहीँ टा साधना आ साधन हमर अहीँ टा 
हम रही सतपथ टा धेने शक्ति दी मुरारी 

दी उछन्नर हम ने ककरो दिक्क नै करै क्यौ 
संग सदिखन ऐ प्रवृत्तिक व्यक्ति दी मुरारी 

एक टा परमात्मा पर विस्वास आ भरोसा 
नित अपन चिंतनटामे अनुरक्ति दी मुरारी 

चाह नै किछुओ टा बस राजीव नाम गाबी 
भावकेँ अविरल सुदृढ अभिव्यक्ति दी मुरारी  

२१२ २२२२ २२१२ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, July 5, 2014

गजल-270

के सहत किछु आ किए जे
बेकहल सभटा किए जे

हिय जरा सभकेँ कहू ने
चलि रहल दुनियाँ किए जे

मरि रहल धरि भान ने किछु
ई घृनित चरजा किए जे

नै कथूकेँ सोच रहलइ
नै विवेको हा किए जे

अछि बचल राजीव कोना
युग बढनिझट्टा किए जे

2122 2122
© राजीव रंजन मिश्र

Friday, July 4, 2014

गजल-269

सदति उचित उत्तर बनी जटिल कठिन सवाल नै
सहज सरल जा धरि रहब उठत नजरि मजाल नै

रहल अडिग बेदाग जे बढल तकर तँ मान नित
कनी मनी लै कष्ट धरि पऱल मुदा अकाल नै

विवेककेँ जे तेज से रहल चढल बढल सदति
धरत तकर की हाथ लोक काल आ कराल नै

विचार बलकेँ ठीक राखि जीत जैब एक दिन
परिश्रमीकेँ लेल किछु अकाश आ पताल नै

चलत मनुख जे बाट घाट आँखि कान फोलि नित
कतहुँ तखन राजीव ओ हैत फेर हलाल नै

1212 2212 1212 1212
 © राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, July 3, 2014

गजल-268

गजलकेँ गजल हिसाबे देखू
कठिन नै सरल हिसाबे देखू

करै छी सदति प्रेषित जे तकरा
चरन रज कमल हिसाबे देखू

सही आ गलत कथी छी जगमे
असल आ नकल हिसाबे देखू

निहित भाव छैक रचनामे तैँ
सुनल आ घटल हिसाबे देखू

जँ राजीव देखबाकेँ ललसा
तँ चातक चपल हिसाबे देखू

122 12 122 22
©राजीव रंजन मिश्र

Wednesday, July 2, 2014

गजल-२६७ 

बड़ मिजाजी मनुख कथिक काबिल 
बिनु मिजाजो मुदा क्षणिक काबिल 

बात मानल कहल सुनल लोकक 
हैत सेहो कनी कनिक काबिल 

बाजि बड़ कम सुनल कहब अनकर 
ओ तँ बाबू बड़ी रसिक काबिल 

बाजलक आ निभा चलल सरिपहुँ 
भेल ने से तखन सहिक काबिल 

सत्त राजीव यैह सभदिनका 
बूरि मरय अछि सदति अधिक काबिल 

२१२२ १२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-266

काया टाकेँ मेल नै
दू आत्माकेँ खेल नै

शाश्वत थिक ई नेह यौ
कहि देने टा भेल नै

के छूटल तिहुँ लोकमे
जे ई बाटे गेल नै

सभ तरहक ऐ ठाम सुख
धरि बेकारक लेल नै

काबिल जे राजीव से
बुझलक भाँटा बेल नै

2222 212
© राजीव रंजन मिश्र