Friday, June 6, 2014

गजल-२४८ 

दुनिया दाबल मुहेँ हँसि लेत
ठामहिँ चानन बना घसि लेत

बस टा चलबाक खाली देर
लोटामे गामकेँ कसि लेत

लोकक चाहक करब की बात
घर सजबै लेल रवि शशि लेत 

ओ बऱ बऱका बहादुर छैक
देखब कखनो पलटि डसि लेत

धुरखुड़ राजीव नै नोचत ग'
अपनेकेँ फेर दोमसि लेत 

२२ २२१२ २२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment