Thursday, June 5, 2014

गजल-२४७ 

तते ने अहम भ' गेल
मनुखता खतम भ' गेल

अपन लेल काँहि काँहि
मनुखकेँ धरम भ' गेल 

जकर नाम माय-बाप
तकर सुख भरम भ' गेल  

निरर्थककँ बाजि लोक
बुझनुक परम भ' गेल 

सबेरे सकाल माति
नरम आ गरम भ' गेल 

बिसरि लोक लाज-धाक 
ह'यौ बेशरम भ' गेल

जँ राजीव बाँचि जैब
बुझब जे रहम भ' गेल 
122 12 121 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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