Sunday, June 29, 2014

गजल-२६४ 

माटिक बनल देह माटिमे मिलि जाइ छैक
माइटकँ' टा भेद माटिए टा खाइ छैक 

जाइत कथी पाँति कोन की थिक चाम वर्ण
गुण बिन किदन मोल किछु मनुखकेँ भाइ छैक

कतबो सगर लोक देत मोजर पाइकेर 
किछुकेँ हिसाबे मुदा कलम इतराइ छैक

चौँचक समाजक समांग सभदिन सोच एक
के पैघ के छोट राइ टा नै राइ छैक 

राजीव चलि ज्ञान बाट बेड़ा पार हैत
ज्ञानक बऱी मोल काल्हियो आ आइ छैक 

२२ १२२१ २१२२ २१२१  
@ राजीव रंजन मिश्र 

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