Thursday, June 26, 2014

गजल-२६२ 

बुन्नी बरसल लोक मधसि गेल 
धीपल ताँतल माटि सरसि गेल 

बाँचल देखू प्राण मनुखकेर 
अमृतकेँ जे धार बरसि गेल 

बाड़ी झाड़ी आ बँसबिट्टीक 
हरियर कंचन पात रभसि गेल 

पड़िते फूँहिक बुन्न पिया लेल 
नवकनियाँकेँ मोन तरसि गेल 

नै जानी राजीव कथी लेल 
मोनक मारल फेर हदसि गेल 
   
२२२२ २१ १२२१ 
@  राजीव रंजन मिश्र 

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