Monday, June 16, 2014

गजल-२५७ 

गुटबाजीकेँ बंद करू
अपनामे नै द्वंद करू

राखू करगर बोल मुदा
कंठक टाँसी मंद करू

मरजादाकेँ डेंग पकऱि
जीबू नित आनंद करू

अनका दुसने लाभ कथी
अपनाकेँ चौबंद करू

मैथिल जन राजीव उठू
मिथिलाकेँ स्वछंद करू
२२२२ २११२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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