Monday, June 2, 2014

गजल-243

दीप छिटपुट जरि रहल ईजोर करबा कँ बास्ते
की बुझत अन्हार जे डेरैत ग' भगबा कँ बास्ते

चलि रहल जे खेल ई संसारमे कोन नबका
मरि रहल छी लरि झगड़ि सभ नीक बनबा कँ बास्ते

मोनमे छी किछु अलग आवेश भरि छाक रखने
डेग अछि तैयार अलगे बाट चलबा कँ बास्ते 

चारि दिनकेँ जिन्दगी रहलै सुनल यैह सभदिन
सभ मुदा छी शानमे अहि ठाम रहबा कँ बास्ते

नाम छी इतिहासमे राजीव ओ वीर टाकेँ
जे जियल बस आनकेँ दुख बटबा कँ बास्ते

2122 212 221 221 22
@ राजीव रंजन मिश्र

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