Monday, June 30, 2014

गजल-२६५ 

की करत के दिक्क ककरो
हारि बैसल सोह अपनों  

चान कहलक चांदनीकेँ 
जैब ने मनमीत कहियो 

नेह डाढ़ल मोन आतुर 
घुरि बटोही ताक फेरो 

आब की बाँचल जमाना 
खीच रहलै बाँस कोरो 

जे मनुख राजीव से धरि 
नै उताहुल हैत कखनो 

२१२२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, June 29, 2014

गजल-२६४ 

माटिक बनल देह माटिमे मिलि जाइ छैक
माइटकँ' टा भेद माटिए टा खाइ छैक 

जाइत कथी पाँति कोन की थिक चाम वर्ण
गुण बिन किदन मोल किछु मनुखकेँ भाइ छैक

कतबो सगर लोक देत मोजर पाइकेर 
किछुकेँ हिसाबे मुदा कलम इतराइ छैक

चौँचक समाजक समांग सभदिन सोच एक
के पैघ के छोट राइ टा नै राइ छैक 

राजीव चलि ज्ञान बाट बेड़ा पार हैत
ज्ञानक बऱी मोल काल्हियो आ आइ छैक 

२२ १२२१ २१२२ २१२१  
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, June 28, 2014

गजल-२६३ 

जखन जखन अपनासँ कहा सुनी भेल
हिया हमर उठि ठाढ सरासरी भेल

कहल अपन ओ आइ बिसरि रहल फेर
कटा छँटा नह केश नवाब जी भेल

मुहाँमुहीँ नै हैत मुदा कहत लोक
समाजमे दिन राति खुशामदी भेल

बऱी गजबकेँ खेल चलल नगर गाम
अनेरकेँ जंजाल बुढाबुढी भेल

हजार गप राजीव सुनब गँ ऐ ठाम
उतेढ जे किछु बाउ कनीमनी भेल

1212 221 1212 21 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, June 26, 2014

गजल-२६२ 

बुन्नी बरसल लोक मधसि गेल 
धीपल ताँतल माटि सरसि गेल 

बाँचल देखू प्राण मनुखकेर 
अमृतकेँ जे धार बरसि गेल 

बाड़ी झाड़ी आ बँसबिट्टीक 
हरियर कंचन पात रभसि गेल 

पड़िते फूँहिक बुन्न पिया लेल 
नवकनियाँकेँ मोन तरसि गेल 

नै जानी राजीव कथी लेल 
मोनक मारल फेर हदसि गेल 
   
२२२२ २१ १२२१ 
@  राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, June 25, 2014

गजल-२६१ 

हम सिनेहक गीत लीखू 
आ कि देखल रीत लीखू 

चालि कुक्कुर बानि बागड़ 
की मनुखकेँ नीत लीखू 

हारि बैसल नेह सगरो 
हम कथी पर जीत लीखू 

बेश चहुँ दिसि आगि लागल 
की कहब थिक शीत लीखू 

सभ अटारी टा कँ' देखत 
तैँ कि नै हम भीत लीखू 

सत कहब ढेकार लागल 
झूठ टा मनमीत लिखू 

कर्म नै राजीव नमहर 
बात टा दस बीत लिखू 

२१२२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-२६१ 

हम सिनेहक गीत लीखू 
आ कि देखल रीत लीखू 

चालि कुक्कुर बानि बागड़ 
की मनुखकेँ नीत लीखू 

हारि बैसल नेह सगरो 
हम कथी पर जीत लीखू 

बेश चहुँ दिसि आगि लागल 
की कहब थिक शीत लीखू 

सभ अटारी टा कँ' देखत 
तैँ कि नै हम भीत लीखू 

सत कहब ढेकार लागल 
झूठ टा मनमीत लिखू 

कर्म नै राजीव नमहर 
बात टा दस बीत लिखू 

२१२२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 


Tuesday, June 24, 2014

गजल-२६० 

काबिल वैह जे निकहा बीछल 
सभटा देखि नै खबटा बीछल 

लोकक हाथमे करमे टा तैँ 
करमक साँढ़केँ चरजा बीछल 

बड़ बूरि लोक टा अपना खातिर  
आसन नीक आ ऊँचका बीछल 

दूसल आनकेँ जे नित सदिखन  
विधना फेर नै तकरा बीछल 

यौ बड़ मंद छी बुधि राजीवक
बड़ आभार जे विधना बीछल  
 
२२२१ २ २२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, June 23, 2014

गजल-२५९ 

जिनगी बनल तराजू आ लोक बटखऱा छै
ऐ कात छी पड़ल हम चहुँ कात सभ जमा छै

आवेग मोनकेँ ई के देखि सुनि कँ बुझतै
सभकेँ तँ लागि रहलै सभ बात मसखरा छै

सभदिनसँ छी निमाहब यारी बऱी कठिन धरि
तन्नुक हिया तँ हारल आ गेल चरमरा छै

ककरा कहब कथी जे आ दोष देब कोना
अपने मिजाज तुरछल ई देल जे दगा छै

राजीव आइ फेरो छी लोहछल कचोटे
क्यौ आबि जे बुझा दित ई कोन बचपना छै

2212 122 221 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, June 22, 2014

गजल-२५८ 

गामसँ घुरती काल मोन मन्हुऐल सन लागैत छैक,हमरे टा नै सभकेँ मुदा उपाय किछु नै। 
प्रेषित अछि हमर ई गजल एहने किछु भाबकेँ समेटने :


किछु बात तँ छै ऐ ठाँ बाबू
बड़ मोन लगै ऐ ठाँ बाबू

यौ गाम घरक बाते अलगे
भरि पोखि भरै ऐ ठाँ बाबू

बड़ मोन हकासल जकरो से
किछु काल हँसै ऐ ठाँ बाबू

सुख चैन भरल शीतल सुरभित
पुरबाइ बहै ऐ ठाँ बाबू

राजीव बड़ी धरि दुखकेँ गप
नै पेट चलै ऐ ठाँ बाबू

221 12 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, June 16, 2014

गजल-२५७ 

गुटबाजीकेँ बंद करू
अपनामे नै द्वंद करू

राखू करगर बोल मुदा
कंठक टाँसी मंद करू

मरजादाकेँ डेंग पकऱि
जीबू नित आनंद करू

अनका दुसने लाभ कथी
अपनाकेँ चौबंद करू

मैथिल जन राजीव उठू
मिथिलाकेँ स्वछंद करू
२२२२ २११२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, June 15, 2014


गजल-256

धिया पुताकेँ आस पिता छैथ
सरल हियक विस्वास पिता छैथ

सही गलतकेँ बोध कराबैत
सटीक पुूर्वाभास पिता छैथ

भने पितैले धरि हियमे नेह
चटक मटक खटरास पिता छैथ

जनैत सभकिछु दुनियादारीक
मुदा गढल विन्यास पिता छैथ

सखा सहोदर फूलि फलल नित जँ
धरम करमकेँ वास पिता छैथ

जँ बाट धैलक पूत गलत फेर
तँ दुखसँ नै उग्रास पिता छैथ

रहल कपारक तेज भ' राजीव
हमर पिताजी खास पिता छैथ

1212 221 1221
© राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, June 14, 2014

 गजल-२५५ 

घाव तँ समयकँ संग भरि जाइ छैक
बात धरि बेहिसाब गड़ि जाइ छैक 

लाभ की यौ खराप गोए कँ
जे गलत से जनाब सड़ि जाइ छैक

नेह दै छैक लोककेँ छाँह
लोक धरि नेह पाबि मरि जाइ छैक

के बुझलकै ग' बात ई सोझ साझ
जे हियाकेँ जरैब परि जाइ छैक

संग रहलै दुआँ गरीबक तखन तँ
काल राजीव ऐल टरि जाइ छैक

२१२ २१२१ २२१२१ 
© राजीव रंजन मिश्र

Friday, June 13, 2014

गजल-२५४ 

नेह भरल आनन कै टा
छै नारिक पासन कै टा 

के करतै दाबी कथिक
बड़ गमगम चानन कै टा 

मै'-धी' पत्नी बहिनक सन
निर्मल आ पावन कै टा 

नेहक पुतली रहितो नित
एहन करगड़ हाँटन कै टा 

राजीवक गप बुझि सरिपहुँ
करतै अनुपालन कै टा 

२२२ २२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, June 12, 2014

गजल-२५३ 

सत धरि बऱी चीज भारी छै बाबू
हल्लुक सहज नै सबारी छै बाबू

कोना कँ जे लोक नेमाहत टा सतकेँ
बेशी तँ हारल जुआरी छै बाबू

अपना हिसाबे तँ काबिल छै कुकुरो
उधिया रहल से अनारी छै बाबू

मानत गँ जगती सबेरे बा साँझे
मरने हरेने पुछारी छै बाबू

जिनगीक राजीव किछु नै ठेकाना
अनमन कँ लागल उधारी छै बाबू

2212 2122 222
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-२५२ 

नेहक छाँहमे मोन जरल नित
जरि मरि आह आ ओह कहल नित 

मारे दर्द बा सुखकेँ कखनो
रहि रहि आँखिकेँ नोर बहल नित 

सगरो कात ई नेह सिनेहक
मारूक फेरमे लोक मरल नित

धुरफंदीक ई हद्द तँ देखू
जे मारल सए धरि एक गनल नित

अजगुत खेल राजीव ई जिनगी
हारल वैह जे जीत रहल नित   

२२२१ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, June 11, 2014

गजल-२५१ 

दाबी करैछ सदिखन
काबिल बनैछ सदिखन

मनुखक भरोस नै किछु 
फाजिल बजैछ सदिखन

अजगुत मिजाजकेँ तैँ 
गुमसुम रहैछ सदिखन

संगे रहत किये ओ 
अलगे चलैछ सदिखन 

राजीव धार नै धरि 
सोँझे बहैछ सदिखन 

२२ १२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, June 9, 2014

गजल-२५० 

अपने समस्त बंधु-बान्धव,जेठ-श्रेष्टक असीम सिनेह आ आशीर्वादक ब'ले प्रेषित कए रहल छी अपन २५०'म गजल,स्नेहाकांक्षी रहब :

ककरा करमक अपन हिसाब देबै ग'
कोना नेहक भरल गुलाब देबै ग'

जखने भेटत कनिकबो जँ पलखैत
माथा सरदर झुका अदाब देबै ग'

भन्ने सहि लेब दुख हियक तँ चुप्पे भ'
टुटने बहने उझलि चिनाब देबै ग'

कतबो आँहाँ बिसरि चलब हमर नाम
अपना हियकेँ कथी जवाब देबै ग'

जुलमी जगकेँ इनाम हम तँ राजीव
अपना खूनक लिखल किताब देबै ग'

2222 1212 1221 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, June 8, 2014

गजल-२४९ 

दुनिया भरिकेँ खेल छै ऐ ठाँ
सभटा झूठक लेल छै ऐ ठाँ

मतलब की छै कोन जे ककरा
फुइसक खातिर मेल छै ऐ ठाँ

मोजर ककरो देत की कनियो
लुरिगर सभ क्यौ भेल छै ऐ ठाँ

झुठक जिनगी झूठकेँ दुनिया
लागय सदिखन जेल छै ऐ ठाँ

जानी धरि राजीव ई सत गप
भेटय जकरे देल छै ऐ ठाँ

2222 212 22
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, June 6, 2014

गजल-२४८ 

दुनिया दाबल मुहेँ हँसि लेत
ठामहिँ चानन बना घसि लेत

बस टा चलबाक खाली देर
लोटामे गामकेँ कसि लेत

लोकक चाहक करब की बात
घर सजबै लेल रवि शशि लेत 

ओ बऱ बऱका बहादुर छैक
देखब कखनो पलटि डसि लेत

धुरखुड़ राजीव नै नोचत ग'
अपनेकेँ फेर दोमसि लेत 

२२ २२१२ २२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, June 5, 2014

गजल-२४७ 

तते ने अहम भ' गेल
मनुखता खतम भ' गेल

अपन लेल काँहि काँहि
मनुखकेँ धरम भ' गेल 

जकर नाम माय-बाप
तकर सुख भरम भ' गेल  

निरर्थककँ बाजि लोक
बुझनुक परम भ' गेल 

सबेरे सकाल माति
नरम आ गरम भ' गेल 

बिसरि लोक लाज-धाक 
ह'यौ बेशरम भ' गेल

जँ राजीव बाँचि जैब
बुझब जे रहम भ' गेल 
122 12 121 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, June 4, 2014

गजल-२४६ 

अहाँक दाबी झूठक छी
पथार फूइस बातक छी

सुरा सुनरिमे डूबल रहि
बनल समाजक सेवक छी

अनेर बाजू जुनि बेसी
बढल लचारी भूखक छी

अहाँ बुझब ने कहियो दुख
सवाल पापी पेटक छी

करेज दरकल राजीवक
लिहाज गांधीवादक छी

121 22 222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, June 3, 2014

गजल-२४५ 

अगिला डेग पहिने तारि चलि रहल
अनढन लेल सगरो मारि चलि रहल

ककरा कोन खगता आ कि चाह किछु
पाइन लोक आबक गाड़ि चलि रहल 

नेहक बाट सभदिन टेढ़ टाढ़  धरि
बेछोहे मतल नर नारि चलि रहल 

बोलक नै जकर किछु मोल आइ से
धोती पाग कुरता झाड़ि चलि रहल 

नै राजीव बेचब मोल सोचकेँ 
भन्ने संग किछु दू चारि चलि रहल 

२२२१ २२२१ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, June 2, 2014

गजल-२४४ 

उठल जे नजरि ओ तहलका मचा गेल 
सभक मोनकेँ चान तारा लखा गेल 

जखन फेर खसलै उठल आँखि लाजे तँ 
हिया पर तड़ातड़ कटारी चला गेल 

अनेरो सबेरे सकाले बटोहीक 
सधल डेग सेहो रभसि तरमरा गेल 

हकासल पियासल उताहुल हियाकेर 
हुनक बोल मिठगर तँ बाजा बजा गेल 

बड़ी पैघ ओ छैथ हरजाइ राजीव 
लहासक सनक गति हमर छथि बना गेल 
  
१२२ १२२ १२२ १२२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-243

दीप छिटपुट जरि रहल ईजोर करबा कँ बास्ते
की बुझत अन्हार जे डेरैत ग' भगबा कँ बास्ते

चलि रहल जे खेल ई संसारमे कोन नबका
मरि रहल छी लरि झगड़ि सभ नीक बनबा कँ बास्ते

मोनमे छी किछु अलग आवेश भरि छाक रखने
डेग अछि तैयार अलगे बाट चलबा कँ बास्ते 

चारि दिनकेँ जिन्दगी रहलै सुनल यैह सभदिन
सभ मुदा छी शानमे अहि ठाम रहबा कँ बास्ते

नाम छी इतिहासमे राजीव ओ वीर टाकेँ
जे जियल बस आनकेँ दुख बटबा कँ बास्ते

2122 212 221 221 22
@ राजीव रंजन मिश्र