Saturday, May 3, 2014

गजल-२२८ 

लोकक नै रहल कहियो किछुओ भरोसा
नै सभटा पुरल ककरो कखनो भरोसा

जे अछि रातिमे नहिँयो भेटत सबेरे
कोना के करत कखनो ककरो भरोसा

कुकुरचालि अपने ई डाढल हियाकेँ
जे काबिल सिनेहक नै तकरो भरोसा

लूटल दाग वस्त्रों टा सभ लहासक
नै राखल ग' दइबोकेँ कनियो भरोसा

कोनो आइकेँ नै ई पुरना पिहानी
जे घनसार बनि छल उऱलो भरोसा

सेरेने हियाकेँ छी राजीव फुइसक
भरमेलक सदति सभकेँ सगरो भरोसा

222 1222 22122
@ राजीव रंजन मिश्र 

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