Friday, May 23, 2014

गजल-२३६ 

ई सिनेहक हमर हिसाब कि बूझल ककरो 
आ कि ठोकल उचित जबाब कि बूझल ककरो 

बात बूझल भने हजार तँ हेतै सभकेँ 
आगि पानिक मुदा बहाब कि बूझल ककरो 

मोन मिलि गेल लोककेँ जँ तखन फेरो ओ     
सर कहत आ कि यौ जनाब कि बूझल ककरो 

चानकेँ कोन बड़ जरुरत छै ईजोरक 
से तँ बिहुँसल कहत गुलाब कि बूझल ककरो 

बड़ दिनक बाद आइ मोन ई राजीवक घुरि 
फेर उनटल हियक किताब कि बूझल ककरो 

२१२२ १२ १२११ २२२२  
@ राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment