Monday, May 12, 2014

गजल-२२९ 

चोट लागै जँ धी-पुतकेँ तरपय छै माए
लाख गलती तँ बेटाकेँ बिसरय छै माए 

एक मायक प्रतापे पोसा गेलय धी-पुत  
सात बेटा अछैतो धरि हुकरय छै माए 
 
बात ककरा हियक किछु कहतै जे बुढ़िया 
नोर आँखिक दबा टकटक निरखय छै माए 

बाँटि अपना मुँहक सदिखन रोटी आ पानि 
राति तीतल बिछौना पर बितबय छै माए 

छैक नेहक त पाछू संसारे बेकल धरि 
नेह सुच्चा अहेतुक टा लगबय छै माए 

ताकि राजीव देखल चहुँ दिसि टा कतबो धरि 
मोन मायक सनक अगबे जुरबय छै माए 

२१२२ १२२२ २२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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