Saturday, May 31, 2014

गजल-२४२ 

कत रौदी क़त दाहड़ धैने
गुमनामीकेँ आँचर धैने

जीबि रहल छी मुँह पर पट्टी  
आ छाती पर पाथर धैने 

जीलहुँ मरलहुँ सदिखन घुटि घुटि 
दृज्ञानक दू आखर धैने 

मोनक जे छल संगी तुरिया 
घुसकल रस्ता पातर धैने 

गुण बिसरब नै गुन राजीवक 
सुधि बुधि छी निसि वासर धैने 


२२२२ २२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, May 30, 2014

गजल-२४१ 

राति बड़ सुनसान लागल 
एक संगी चान लागल 

टान मोनक आइ हमरा 
फेर मारत जान लागल 

बोल हुनकर बेश रुखगर
आगि आ तूफान लागल 

नीक नै होली दिवाली 
ईद आ रमजान लागल 

लोक वेदक कर्म फुइसक 
आचमनि आ ध्यान लागल 

जीत थिक बा हारि ई से 
नै सहज अनुमान लागल 

की कहब राजीव ककरा 
जिंदगी अनजान लागल 

२१२२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, May 28, 2014

गजल-२४० 

चालि चलन नै राखब ऊँच
फेर कथी के बाजब ऊँच

जाति धरमकेँ सिक्कर थाम्हि
अपने मोने साजब ऊँच

साफ अनेरे बोली राखि 
किर्ति कि कहियो मानब ऊँच

फूसि चढेने छाती बेश
जुनि सोचू जे लागब ऊँच

एक कसौटी राजीवक
नेह निमाहू जानब ऊँच

२११२ २२२ २१  
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, May 27, 2014

गजल-२३९

नोरकेँ नै मोल रहलै
मेल आ नै जोल रहलै  

के करत ककरासँ गप-शप
आब नै मिठ बोल रहलै 

ठोढ़केँ दियमान फाजिल
बोल फूटल ढोल रहलै

बान्ह बान्हल की प्रशाषन
खोलि बरसा पोल रहलै 

माथ तरकेँ गेरुआ गुम 
रुइसँ चरफड़ खोल रहलै

बाट जोहल आँखि जकरे
सैह बनि अनमोल रहलै 

गाम नै पहुँचल ग' बिजली
ठाढ़ ठुठ्ठा पोल रहलै 

छै पियासल मोन बड़ तैँ
भरि अपन सभ डोल रहलै 

बेश ठगलक फेर नेता
हाथमे बस ओल रहलै 

नाम पर सद्भावनाकेँ
झूठकेँ अनघोल रहलै 

जीब टा राजीव कहुँना
छीः मनुखकेँ गोल रहलै 
२१२२ २१२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, May 26, 2014

गजल-२३८ 

फूल नै प्रतीक होइछ शांतिकेँ
कर्म टा मशाल बारय क्रांतिकेँ

नै करब विचार नै थिक नीक गप
ई करय प्रसार मोनक भ्रांतिकेँ

चाह नै यथेष्ट अगबे जीत लै
बिनु क्रिया खसब कहब बेदांतिकेँ

पानि राखि आखिँ नित चँउचक रहत
नै असर पऱत कुनो चक्रांतिकेँ

आह नै गरीबकेँ राजीव ली
नोचि खाय ई हियक सुख शांतिकेँ

212 121 22 212
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-२३७ 

आह क्रिकेट वाह क्रिकेट
मोन मँहक उछाह क्रिकेट 

देखि जँ लेब एक नजरि तँ 
मोहि करत बताह क्रिकेट 

खेल सँ सीख ज्ञान चली जँ  
बेश उचित सलाह क्रिकेट 

भाइ मनुख कँ लाइफ टा तँ 
मैच सनक प्रवाह क्रिकेट 

राखल पाग हिन्दुस्तान 
मानल बादशाह क्रिकेट  

२१ १२१ २१ १२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, May 23, 2014

गजल-२३६ 

ई सिनेहक हमर हिसाब कि बूझल ककरो 
आ कि ठोकल उचित जबाब कि बूझल ककरो 

बात बूझल भने हजार तँ हेतै सभकेँ 
आगि पानिक मुदा बहाब कि बूझल ककरो 

मोन मिलि गेल लोककेँ जँ तखन फेरो ओ     
सर कहत आ कि यौ जनाब कि बूझल ककरो 

चानकेँ कोन बड़ जरुरत छै ईजोरक 
से तँ बिहुँसल कहत गुलाब कि बूझल ककरो 

बड़ दिनक बाद आइ मोन ई राजीवक घुरि 
फेर उनटल हियक किताब कि बूझल ककरो 

२१२२ १२ १२११ २२२२  
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, May 22, 2014

गजल-२३५ 

सुन्नर गमगम फूलक माला 
जीवन तन्नुक तागक माला 

जिबिते पहिरल बुड़िबक सदिखन 
मरला पर किछु लोकक माला 

गमकै बेशी चम्पा जूही  
नै धरि कम अर्हूलक माला 

चाही सभकेँ सभटा निकहा 
पहिरत नै क्यौ नीतक माला 

मानू चाहे नै मानू यौ 
जिनगी अपने करमक माला 

बटमारी के ककरो करतै 
झूठक बल पर जीतक माला 

ठोकल ठाकल गप राजीवक 
वीरक अभरन भागक माला 

२२२२ २२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, May 21, 2014

गजल-२३४ 

करतब कम आ भाषन बेसी
ताकल उँचगर आसन बेसी

अपने मोने ओ बड़ काबिल
तैँ नै चललै शासन बेसी

रुचिगर भोजन छोऱल नै धरि
कैलक नित पद्मासन बेसी

पूछल हुनका किछुओ क्यौ जे
कहला हमरे पासन बेसी

बड़का छोटका नै किछु पानक
मोजर लेलक घासन बेसी 

सनहक्की लै दौगल जे बुरि
रान्हल से अरगासन बेसी 

देखल सदिखन ई राजीवक
मुँहफट अगिलह ना
सन बेसी 

2222 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, May 20, 2014

गजल-२३३ 

आगि जेना बरसा रहल छैक गरमी 
देह मनुखक झड़का रहल छैक गरमी 

चामकेँ झड़का गेल ई दिन दहाड़े 
रातियोमे तड़पा रहल छैक गरमी 

मोन सदिखन छै भेल विपरीत सभकेँ
साँस लोकक अटका रहल छैक गरमी 

पानिकेँ नै किछु मोल बुझलक मनुख तैँ 
पानि खातिर तरसा रहल छैक गरमी 

के सहत राजीव किछु अनुराग नेहक 
मोनकेँ टा गरमा रहल छैक गरमी  

२१२२ २२१२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, May 19, 2014

गजल-२३२ 

साँचकेँ आँच की 
तीन आ पाँच की 

मानि ली बातकेँ 
खोंच आ खाँच की 

धर्मकेँ नाम पर 
जातिगत नाँच की
 
बेरपर जैब बुझि 
ठोस आ काँच की 

फूसि राजीव नै 
लाख हौ'क जाँच की 

२१२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, May 18, 2014

गजल-२३१ 

निरसल मिथिला कानि रहल अछि 
मैथिल नै धरि मानि रहल अछि 

लागल सभ क्यो नीक अपन लै 
अपनेमे ई ठानि रहल अछि 

तिरपित मैथिल चारि टकामे 
कमजोरी सभ जानि रहल अछि 

अपना सतुआ नोन कँ महि महि 
अनका खातिर सानि रहल अछि 

मोदी लालू आर नीतीशक* 
सीटक गनती गानि रहल अछि

के जानल के चूसि रहल आ 
के घरमे की आनि रहल अछि  

जीतल क्यौ राजीव अनेरे 
बुड़िबक छाती तानि रहल अछि 

२२२२ २१ १२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

*पाँचम शेरकेँ दोसर पाँतिमे एक टा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि 

Wednesday, May 14, 2014

गजल-२३० 

राम राजक जरूरत घर-घरमे 
चलि रहल धरि सियासत घर-घरमे 

के कहत के छी कम आ के बेसी 
माल जालक हुकूमत घर-घरमे
 
लिपि तँ बिसरल बहुत पहिने यौ बाबू 
मायक भाषा उपासत घर-घरमे 

खोज गामक रहल नै ककरो धरि 
जान चाही अमानत घर-घरमे 

बानि राजीव मनुखक नै बदलल 
नीक लोकक फजीहत घर-घरमे 

२१२२ १२२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, May 12, 2014

गजल-२२९ 

चोट लागै जँ धी-पुतकेँ तरपय छै माए
लाख गलती तँ बेटाकेँ बिसरय छै माए 

एक मायक प्रतापे पोसा गेलय धी-पुत  
सात बेटा अछैतो धरि हुकरय छै माए 
 
बात ककरा हियक किछु कहतै जे बुढ़िया 
नोर आँखिक दबा टकटक निरखय छै माए 

बाँटि अपना मुँहक सदिखन रोटी आ पानि 
राति तीतल बिछौना पर बितबय छै माए 

छैक नेहक त पाछू संसारे बेकल धरि 
नेह सुच्चा अहेतुक टा लगबय छै माए 

ताकि राजीव देखल चहुँ दिसि टा कतबो धरि 
मोन मायक सनक अगबे जुरबय छै माए 

२१२२ १२२२ २२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, May 3, 2014

गजल-२२८ 

लोकक नै रहल कहियो किछुओ भरोसा
नै सभटा पुरल ककरो कखनो भरोसा

जे अछि रातिमे नहिँयो भेटत सबेरे
कोना के करत कखनो ककरो भरोसा

कुकुरचालि अपने ई डाढल हियाकेँ
जे काबिल सिनेहक नै तकरो भरोसा

लूटल दाग वस्त्रों टा सभ लहासक
नै राखल ग' दइबोकेँ कनियो भरोसा

कोनो आइकेँ नै ई पुरना पिहानी
जे घनसार बनि छल उऱलो भरोसा

सेरेने हियाकेँ छी राजीव फुइसक
भरमेलक सदति सभकेँ सगरो भरोसा

222 1222 22122
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, May 2, 2014

गजल-२२७ 

मरजीकेँ अपने रहि चलैत अछि आब
हमहीँ टा काबिल छी कहैत अछि आब

ब्यवहारक जे भेटय दरिद्रछिम्मरि तँ 
बऱ अजगुत ई लीला लगैत अछि आब 

संस्कारक ने कोनो रहल ग' ठेकान 
जे ग्यानी से बड़का लठैत अछि आब 

करनी नै कथनी टा हजार गजकेँ ल' 
गंगाजलमे चानन घसैत अछि आब 

छी कारन बस अतबे दुखक तँ राजीव 
ई गौरब जे सभटा अछैत अछि आब 

222 222 121 221 
@ राजीव रंजन मिश्र
गजल-२२६ 

फूकि पजारल घूर छी बाबू
हाँ यौ हम मजदूर छी बाबू 

दुनियाकेँ सभ देल धरि अपने 
गत्तर गत्तर भूर छी बाबू 

रोटी कपऱा ठाँवकेँ खातिर 
बेचल कित्ता धूर छी बाबू 

जीनगीकेँ सभ रंगमे खदकल 
छानल करगर झूर छी बाबू 

सभटा हमरे हाथके रचना 
नै धरि शाने चूर छी बाबू 

की मोजर आ मोल के देलक 
ककरा आँखिक नूर छी बाबू 

जइरेकेँ राजीव नित बिसरब 
जगतीकेँ दस्तूर छी बाबू 

2222 21 222 
@ राजीव रंजन मिश्र