Saturday, April 5, 2014

गजल- २१२ 

गजल गजल गजल कहब
बुझल सुझल सहल कहब

अहाँ बुझू मजाक धरि
बितल घटल असल कहब

हियाक दर्द दाबि नित
दरेग नै रहल कहब

सटीक बात तीत तैँ
बना कँ मिठ सरल कहब

जँ लाख कंठ दाबि दी
तथापि नै नकल कहब

भने कहू गलत सही
वचन तँ हम ठरल कहब

कहब जँ रातिकेँ दिवस
तखन अँहीँ मतल कहब
1212 1212
@ राजीव रंजन मिश्र 

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