Thursday, April 24, 2014

गजल-221

कहब जँ बात हियक कहब बुझाबए छी
बताह लोक जकाँ समय बिताबए छी

सुनल ककर जे बात सुनत हमर किछु तैँ
भरास मोन मँहक अपन दबाबए छी

चमकि रहल जे चान पुर्णिमाक से लखि
हियाउ भरि कँ अपन हिया जुराबए छी

लगा कँ आगि करेजमे चलल सदति सभ
जरब हियाकेँ लिखि अगनि मिझाबए छी

मिजाज राजीवक जखन रहल ग' जेहन
तही हिसाबसँ कहि गजल सुनाबए छी

121 2112 121 2122

@ राजीव रंजन मिश्र

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