Tuesday, April 29, 2014

गजल-२२५ 

मायक नै थिक जोड़ ने बिसरब 
हुनका बिन सभ थोड़ ने बिसरब 

बिसरब सभटा बातकेँ सभ धरि 
कखनो लागब गोर ने बिसरब 

मायक निश्छल नेहमे सींचल 
जगती पोरे पोर ने बिसरब 

आशीर्वादक छाँहमे रहने 
कखनो नै छी खोड़ ने बिसरब 
 
लाखे व्यंजन होइ ने कतबो 
बथुआ सागक झोर ने बिसरब 

यौ बाबू सभ नेहमे छानल 
गामक ओ तिलकोर ने बिसरब 

राजीवक बस एक नेहौरा 
मायक माटिक नोर ने बिसरब  

२२२२ २१ २२२ 
@  राजीव रंजन मिश्र 

गजल-२२४ 

बदलत नै दुनिया बिना ख़ास भेने 
अपने मोने नित बहुत रास भेने 

काबिल टा ओ नै जे मतल शानमे छी 
नीको नै सदिखन मधुर भास भेने 

ओना काजक चीज थिक गाछ सभटा 
अलगे धरि मोजर अमलतास भेने 

जिनगी अहिना चलि सभक बीति जेतै 
भेटत ने अगबे शिलान्याश भेने 

आबो नै राजीव बूझब तँ कहिया 
सगरो आ सभटा बिलटि नाश भेने 

२२२ २२१२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, April 28, 2014

गजल-२२३ 

कलम आइ बाजह धुर्झार फेरो
लिखह मोनकेँ सभ मनुहार फेरो

ब्यथा मोनकेँ थिक ई बऱ उताहुल
बना लेब तोरे हथियार फेरो

कखन देल मोजर किछु लोक सतकेँ
सजल पाप-फुइसक दरबार फेरो 

उठाबह उचित आ अधिकारकेँ गप
जँ से नै तँ कहतह धिक्कार फेरो 

ककर दोष देखब ककरा कि दुसबै
भरल छैक सगरो अखबार फेरो

गजब खेल देखल सदिखन सगर ई
हिया तोरि हँसलै संसार फेरो

गरीबक कठिन छै दू ग्रास जूटब
क्षुधा जरि उड़ल बनि घनसार फेरो 

जँ राजीव वेदन मोनक लिखा जै
तँ भेटत हियाकेँ सुखसार फेरो

1221 222 2122
@ राजीव रंजन मिश्र
गजल -२२२ 

आइ हमर जेठ धिया सुश्री विष्णुप्रियाक जन्मदिनक शुभ अवसर पर हुनका लेल हमर आर्शीर्वाद आ उद्गारक किछु शब्द गजलक रूपमे प्रेषित अछि अपने बन्धु-बांधव,जेठ -श्रेष्ठ गुणीजनक समक्ष,आशिर्वचनक अकांक्षी रहब : 

जन्मदिनक शुभकामना दुलरी धियाकेँ
होइ सफल सभ चाह टा दुलरी धियाकेँ

चान तरेगण द्वारि पर हो ठाढ सदिखन
स्वच्छ रहनि नित भावना दुलरी धियाकेँ


जीत सदति हो बाटमे जिनगीक हुनकर
संग रहथि नित शारदा दुलरी धियाकेँ

भान रहनि निज धर्म करमक राति दिन आ
स्पष्ट हियक अवधारना दुलरी धियाकेँ

दूहि कुलक बस लाज ओ राजीव राखथि
यैह कहब माँ बाप टा दुलरी धियाकेँ


2112 2212 22122
@ राजीव रंजन मिश्र

Thursday, April 24, 2014

गजल-221

कहब जँ बात हियक कहब बुझाबए छी
बताह लोक जकाँ समय बिताबए छी

सुनल ककर जे बात सुनत हमर किछु तैँ
भरास मोन मँहक अपन दबाबए छी

चमकि रहल जे चान पुर्णिमाक से लखि
हियाउ भरि कँ अपन हिया जुराबए छी

लगा कँ आगि करेजमे चलल सदति सभ
जरब हियाकेँ लिखि अगनि मिझाबए छी

मिजाज राजीवक जखन रहल ग' जेहन
तही हिसाबसँ कहि गजल सुनाबए छी

121 2112 121 2122

@ राजीव रंजन मिश्र

Tuesday, April 22, 2014

भक्ति गजल-११ 

मुरली माधबकेँ जखने मधुर बजलए
राधारानीकेँ पायल छनकि उठलए

नाचल गोपी आ ग्वारो किसन संगमे
सुर नर किन्नर से लखि लखि हरषि रहलए

रासक शोभाकेँ के की बखानत मुहें
लागल निधिबनमे चन्ना उतरि पड़लए 

यमुना काते औ कनुआ रचल खेल से
नाथल कालीकेँ फन आ बिहुँसि नचलए

जोऱी मोहनकेँ राजीव दोसर कतह
मीतक ताण्डुल पर त्रिभुवन लुटा हँसलए

२२ २२२ २२१२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, April 21, 2014

गजल-२२० 

जँ ठानल छी तँ मानल छी 
किए आतुर भ' हारल छी

ककर भेलय ग' सगरो सभ 
कथी लै भेल पागल छी 

ज़माना संगमे चलतै
जँ खुट्टा ठीक गाड़ल छी 

बिना गेने इनारक ल'ग 
उचित्ते ने पियासल छी

कनी राजीव झटकारू 
कतह सरकार लागल छी  

१२२२ १२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, April 20, 2014

गजल-२१९
 
सोचब नै किछु काल जँ थमि कँ 
गरजे भेटत जीत हकमि कँ 

देखल कहिया ककरा आन 
बड़ पाछुऔला बाउ भरमि कँ 

छोड़ू ने शोणितकेँ बात 
ठोकत छाती हाड़ हजमि कँ 

चेतू आबो यौ सरकार 
राखब कत दिन डेग सहमि कँ 

कटहर की राजीव लगैब 
फेरो जीवन आर जनमि कँ 

२२२ २२१ १२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, April 18, 2014

गजल-२१८ 

मोन कहाँ किछु की सभ बीतल सभटा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम 
देखि अपनकेँ सभ किरदानी चरजा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम 

फेर गछाड़ल झड़कल सोचक छी अपने आपमे मातल जे 
बाटक की कहि किछु औ बाबू खरपा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम  

हाल बनल अछि एहन सन किछु सभ गामे गाम चौबटियाकेँ    
लागि रहल जे घर आंगन दरबज्जा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम  

साँझ सबेरे बेधल छातीकेँ हम बुझबीह किछु कतबो धरि 
आह भरल जे बाजल से सुनि पगहा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम

मीत सखामे पटिदारीमे किरिया राजीव एहन देखल   
आर तँ आरो अभरन बातक पनहा भरिसक बिसरि गलहुँ हम 

 २११२२ २२२२ २२२२ १२२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, April 15, 2014

गजल-२१७ 

ई देश पड़ल अछि सारा सन 
धरि लोक उताहुल पारा सन 

अछि फेर चुनावक मौसम तैं 
बड़ बोल सुनब जयकारा सन 

जे बाजि रहल हम छी संगे 
से लागि रहल बिषहारा सन 

धुरखेल पुरनगर वोटक ई 
नेता तँ रहत ध्रुबतारा सन 

राजीव मरब हमहीँ आँहाँ 
कसिया कँ निचोरत गारा सन  

२२१ १२२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Monday, April 14, 2014

गजल-२१६ 

समय सालकेँ ई तकाजा चलए छै 
हिया तोड़ि लोकक जमाना चलए छै 

चहूँ कात देखल बिधनाकेँ माया 
गजब आइ घर घर तमाशा चलए छै 

अपन काज पड़िते तँ छिटकय छै जत तत 
सहटि संग धेने पराया चलए छै 

अपन हाथमे नै रहल किछुओ मनुखक 
मुदा कोन ककरो बहाना चलए छै 

जँ इतिहास राजीव उनटब ई भेटत 
खसनिहार पर बड़ ठहाका चलए छै 

१२२१ २२ १२२ २२२ 

@ राजीव रंजन मिश्रा 

Sunday, April 13, 2014

गजल-२१५ 

फलक राजा आम छै 
फरय गामे गाम छै 

चढ़ल सभकेँ आँखि पर 
पहिल गोपीराम छै 

भरल पोरे पोर रस
सुभग तकरे नाम छै 

पड़ल गरमी आब बस 
कलम गाछी ठाम छै 

मतल बेसी पाकि से 
खसय बुढ़बा भाम छै 

रहत करनी संग टा 
कथी काजक चाम छै 

हियामे राजीवकेँ 
बसल मिथिला धाम छै  

१२२२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

Tuesday, April 8, 2014

भक्ति गजल-१० 

आई रामनवमीक शुभ अवसर पर रामललाक प्रति निकलल किछु उदगार प्रेषित अछि अहाँ सभक समक्ष,स्नेहाकांक्षी रहब। 

प्रगटल आइ अबधमे चारू भय्या छथि 
कैकयि मोन मुदित बिहुँसल कौशल्या छथि 

नवमी तीथि सुखद मनभावन चैतक बड़ 
महमह आइ बहल चहुँ दिसि पुरवय्या छथि 

नौबत बाजि रहल अछि नगरीमे सगरो 
बरसल सोन रतन दशरथ लुटवय्या छथि 

शिव चतुरादि अएला देखय अनुपम छवि 
शोभासिन्धु परमसुख राम* रमय्या छथि 

हरषल मोन मगन राजीवक लखि रूपक 
लागल राम अगम भवसिंधु* बचय्या छथि 

 २२२१ १२२ २२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

* चारिम आ पाँचम शेरमे दू गोट अलग अलग लघुकेँ एक टा दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि। 
सुझाब आ सिनेहक आकांक्षी रहब। 

Monday, April 7, 2014

गजल-२१४ 

सदिखन अहाँ नै रूसल करू
मोनक हमर दुख बूझल करू

बिसरल अपन छी हम सोह तैँ
हालत हियक नै पूछल करू

हम टूटि गेलहुँ से ठीक धरि
कथमपि अहाँ नै टूटल करू 

दिन काल बड़ थिक बेकार सन
आँचर खसा नै घूमल करू  

राजीव हारल छी आपमे
आंगुर उठा नै दूसल करू 

2212  22212
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-२१३ 

ई अहम खा जाइ छै 
भाग नै फरियाइ छै  

बात अनकर की करब 
मात यूवी खाइ छै 

बेर कालक चूक बड़ 
आँखिमे गरियाइ छै  

बाँहि पूरब छोटकेँ 
काज अजगुत भाइ छै 

गारि पढ़ि राजीव नै  
ख़ास सरियाइ छै 

२१२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

बात छोटक की करब 
मात बड़को खाइ छै 

बात लोकक की करब 
मात दैवो खाइ छै 

बात आनक की करब 
मात दिग्गज खाइ छै 

बात मूसक कि करब 
मात बाघो खाइ छै 

Saturday, April 5, 2014

गजल- २१२ 

गजल गजल गजल कहब
बुझल सुझल सहल कहब

अहाँ बुझू मजाक धरि
बितल घटल असल कहब

हियाक दर्द दाबि नित
दरेग नै रहल कहब

सटीक बात तीत तैँ
बना कँ मिठ सरल कहब

जँ लाख कंठ दाबि दी
तथापि नै नकल कहब

भने कहू गलत सही
वचन तँ हम ठरल कहब

कहब जँ रातिकेँ दिवस
तखन अँहीँ मतल कहब
1212 1212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, April 4, 2014

गजल-२११ 

सभ आगूमे हम बाद रही
धरि अपनामे आजाद रही 

ठानी जखने किछु बात प्रभू
बनि अविचल ध्रुव प्रहलाद रही

नित भाखी हम मधु गीत गजल
आ साधल टा सुरनाद रही 

नै चाही किछुओ आर सदति
सभ देने आशिर्बाद रही  

नै अभिलाषा राजीव हियक
जे झूठक बनि अहलाद रही  

२२२२ २२११२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, April 3, 2014

गजल-२१० 

चुनाव नै भेल खेल भ' गेल 
पसार कुर्सीक लेल भ' गेल 

अनेर लोकक तँ बात विचार 
प्रचार माध्यमसँ सेल भ' गेल 

पछात पुनि पाँच बरषक तँ जनि 
ई गाम सांसदकँ जेल भ' गेल 

सिनेह मोनक कि आब रहत ग'
जते हएबाक भेल भ' गेल 

सवाल राजीव एक हजार   
जवाब हँसिये कँ देल भ' गेल 

१२१ २२१ २११२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र

* तेसर शेरमे "ई"केँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि। 

गजल-२०९ 

फुलबारीमे फबि रहल से फूल अहाँ सदिखन
अपना दुनियामे रहू मसगूल अहाँ सदिखन 

विर्रो कतबो ने भयाबह रूप लखा दै धरि
ढठ्ठा बान्हब आ रहब अनुकूल अहाँ सदिखन 

ढाठी धेने काज ने होएत सफल कोनो
बुझि ई राखब आ जुटब सामूल अहाँ सदिखन 

दुनियादारीकेँ निमाहयमे बेस मसक्कति धरि
राखब पाइन आँखिमे नै शूल अहाँ सदिखन 

जगती डाढ़ल छैक नित राजीव समस्याकेँ
प्रश्नक उत्तर टा बनब माकूल अहाँ सदिखन 

२२२२ २१२ २२१ १२२२
@ राजीव रंजन मिश्र