Monday, March 10, 2014

गजल-१९७ 

बेकारक झगड़ा चलल
झगड़ा नै रगड़ा चलल

ढेका फूजल बेर पर 
बोली धरि तगड़ा चलल 

लागत किछुकेँ चालि जनि 
अंजनि बनि बगड़ा चलल

सभकेँ छी हम बाप कहि 
कनसुपती डगरा चलल

फूइसकेँ राजीव सभ  
अपनेमे अगड़ा चलल 

२२२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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