Thursday, March 6, 2014

गजल-१९४ 

कतहुँ दीप तँ कतहुँ हिया जरि रहल
कि संसारमे* सभ जना जरि रहल

ककर आब के किछु जिगेसा करत 
धधा आगिमे* महकमा जरि रहल 

कथी मोल कनियो* सिनेहक बचल 
खसा नोर आँखिक* दिया जरि रहल

गजब बात ई* जे बुझनिहार गुम  
बिना बात लै बुरि धहा जरि रहल  

पसरि गेल सगरों कुकुरचालि आ 
दहेजक गछाड़ल* धिया जरि रहल 

असल मारि गूड़क* तँ बुझल धोखरा 
कि गरदा* बनल छड़पिटा जरि रहल 

दुखक बात ई* आब राजिव जे  
जितल दाव से* दस गुना जरि रहल 

१२२१ १ १२ १२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

* चिन्हित शब्द सभमे एक टा दीर्घकेँ,दू गोट हर्स्व मानबाक छूट लेल गेल अछि,सुझाबक अपेक्षा रहत। 

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