Sunday, March 30, 2014

गजल-२०८ 

ओ खनहि तुष्टा आ खनहि रुष्टा छथि
कहबए स्पष्ट आ सरल वक्ता छथि

के कहत हुनका जे अधिक जुनि बाजू
मग्न अपनेमे ओ महग मुक्ता छथि

सोह नै नेताकेँ रहल लोकक धरि
दानकेर फेरो थाम्हने बक्सा छथि

गाममे अबिते रस मधुर चूअत आ
बुझि परत जेना वैह टा सुच्चा छथि

मोन अतबे टा कहि रहल राजीवक
साधु बनने की अँइठले जुन्ना छथि

212 222 12 222
@ राजीव रंजन मिश्र

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