Friday, March 28, 2014

गजल-२०७

नै नदीकेँ धार देखू
के पऱल लाचार देखू

देखि लेने टा बचब तै
चन्द्रमाकेँ पार देखू

अछि उताहुल साफ पन्ना
हाशिया पर वार देखू 

रंग भेदक तान धैने
बड़ चलल अतिचार देखू 

किछु बिलमि टा सोचि ली आ
जीत टा नै हार देखू 

कौर जे छीनल गरीबक
से उठेने भार देखू

आब नै हारू करेजा
चिर सपन साकार देखू

सभ चलू राजीव संगे
सुख सिनेहक हार देखू  

2122 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

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