Thursday, March 20, 2014

गजल-२०३ 

हँसि हँसि क' जीयब सीख लेलहुँ 
भीतरसँ भीजब सीख लेलहुँ 

जिनगी तते ने चोट देलक 
आरिज भ' लीखब सीख लेलहुँ 

मुँह कान झाँपल सभ अपन धरि  
फटकीसँ चीन्हब सीख लेलहुँ 

दू घोंट ई माहुर सुराकेँ 
हमहूँ तँ पीयब सीख लेलहुँ 

राजीब नै बेसी कहब किछु 
जीवनसँ जीतब सीख लेलहुँ 

२२१ २२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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