Sunday, March 16, 2014

गजल-१९९ 

भलमनसाहतकेँ सम्मत जरा लोक होरी खेल गेल
झूठक बाबतमे सत्ते धधा लोक होरी खेल गेल

नेहक दरसन नै भेटल कनी हूक ऊठल मोनमे तँ
मारूक बेदनकेँ लाली बना लोक होरी खेल गेल

खेलल होरी ओना गेल छल नेह बरसेबाकँ लेल
कूरीतक गंगा यमुना बहा लोक होरी खेल गेल

ककरो कखनो नै मोनक मीत भेटल ताहि हेतु
किछु अकुलाहटमे हिय हरा लोक होरी गेल

छोड़त की अनका राजीव औ कृष्ण राधाकेँ
सुच्चा नेहोकेँ तिकऱम बता लोक होरी खेल गेल

२२२२२ २२१२ २१२२ २१२१  
@ राजीव रंजन मिश्र

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