Sunday, March 30, 2014

गजल-२०८ 

ओ खनहि तुष्टा आ खनहि रुष्टा छथि
कहबए स्पष्ट आ सरल वक्ता छथि

के कहत हुनका जे अधिक जुनि बाजू
मग्न अपनेमे ओ महग मुक्ता छथि

सोह नै नेताकेँ रहल लोकक धरि
दानकेर फेरो थाम्हने बक्सा छथि

गाममे अबिते रस मधुर चूअत आ
बुझि परत जेना वैह टा सुच्चा छथि

मोन अतबे टा कहि रहल राजीवक
साधु बनने की अँइठले जुन्ना छथि

212 222 12 222
@ राजीव रंजन मिश्र

Friday, March 28, 2014

गजल-२०७

नै नदीकेँ धार देखू
के पऱल लाचार देखू

देखि लेने टा बचब तै
चन्द्रमाकेँ पार देखू

अछि उताहुल साफ पन्ना
हाशिया पर वार देखू 

रंग भेदक तान धैने
बड़ चलल अतिचार देखू 

किछु बिलमि टा सोचि ली आ
जीत टा नै हार देखू 

कौर जे छीनल गरीबक
से उठेने भार देखू

आब नै हारू करेजा
चिर सपन साकार देखू

सभ चलू राजीव संगे
सुख सिनेहक हार देखू  

2122 2122
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, March 26, 2014

गजल-२०६ 

नै आँचरमे रहल नेह नै आँखियो नोराइत अछि
लागल ई रोग तेहन कँ जे नेनपन लेढ़ाइत अछि

लोकक ठेकान नै जा रहल कोन गलियारा धैने
मनुखक नै गन्ह बाबू मनुखकेँ कनी सोहाइत अछि 

देखब की खेल ओक्कर चलत चालि एहन जे चुप्पे
सूतलकेँ बात की आब जागल नयन चेहाइत अछि 

जखने क्यौ टोकि देलक कि आफत खसा देलक सगरो
के की बाजत हमर देह सुन्नर भने गन्हाइत अछि 

गोए राखब उपाए तँ राजीव नै कोनो बातक
कतबो ने दाबि राखू हियक चेन्ह धरि देखाइत अछि

2222 1221 2212 2222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, March 25, 2014

गजल-२०५ 

ककरो की भान जे की बीत रहल ककरा पर 
कनियो ने सोच जे के जीत रहल ककरा पर 

कोनो बैबे तँ नै छै आइ मनुखकेँ मोजर 
जानी नै के बना ई रीत रहल ककरा पर 

दूइभकेँ नाम नेसानो तँ पड़ल आफतमे 
मोती बनि ओस धरि पीहीत रहल ककरा पर                                                                                   
ओना कहबाक खातिर बात चलत ढाकी भरि 
धरि सतमे आब किनको प्रीत रहल ककरा पर 

बड़का बूरि लोक टा राजीव झमारल नेहक 
बूरिबकहा गाबि दोषक गीत रहल ककरा पर   

२२२ २१२२ २११२ २२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Friday, March 21, 2014

गजल-२०४ 

चलू आब पछिला बिसरि जाय सभटा 
बदलि दी जगतकेँ गलत भाय सभटा 

मनुख जन्म भेटल करी कर्म टा बस 
प्रभू हाथमे छोड़ि सुनवाय सभटा  

अबस सोचि ली संच मोने बिलमि जे 
कठिन बेस असगर सलटनाय सभटा 

बयस बीति कतकेँ रहल अछि कुमारे 
तजी भ्रूण हत्याकँ हरियाय सभटा 

बहुत भेल राजीव गत झूठ खातिर 
अपन सोच बदली जँ सरिआय सभटा 

१२२१ २२१२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

Thursday, March 20, 2014

गजल-२०३ 

हँसि हँसि क' जीयब सीख लेलहुँ 
भीतरसँ भीजब सीख लेलहुँ 

जिनगी तते ने चोट देलक 
आरिज भ' लीखब सीख लेलहुँ 

मुँह कान झाँपल सभ अपन धरि  
फटकीसँ चीन्हब सीख लेलहुँ 

दू घोंट ई माहुर सुराकेँ 
हमहूँ तँ पीयब सीख लेलहुँ 

राजीब नै बेसी कहब किछु 
जीवनसँ जीतब सीख लेलहुँ 

२२१ २२ २१२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, March 19, 2014

गजल-२०२ 

जखन क्यौ नै संगमे तँ हम छी ने
अहाँकेँ सभ रंगमे तँ हम छी ने

भने सुखकेँ बेर नै रही हम धरि
दुखक मारुक जंगमे तँ हम छी ने

अहाँ अपने मोनकेँ टटोलब जे
सचर मीतक ढंगमे तँ हम छी ने

हमर भागक गप्प जे अहाँ संगी
सगुनमे आ भंगमे तँ हम छी ने

कनी काले राजीव छी मुदा तैय्यो
सखा बनि मौरंगमे तँ हम छी ने

1222 212 1222
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, March 18, 2014

गजल- 198

हाय रे अपना माटिक टान
भात दाइल तरकारिक टान

चाह नै छप्पन ब्यंजन केर
गामकेँ दिसि टा साबिक टान

आर के जीतत परतरमे जँ
आमकेँ मासक गाछिक टान

देखने हेबय सभगोटे तँ
गायकेँ खातिर बाछिक टान

गाम आ माए लै राजीव
नै अभागल टा प्राणिक टान
212 22 2221
@ राजीव रंजन मिश्र
गजल- २०१ 

नै आब नेह सहजे भेटत
किछु खोंच खाँच लगले भेटत

दू डेग संग चलिते मातर
सभ हाथ जोऱि अलगे भेटत

जे बाट जैब सभमे बाबू
दू चारि गोट गजबे भेटत

के आब बात लोकक सूनत
दियमान चाऱ चढले भेटत

यौ कान सोन दुन्नू संगे
बऱ ऊँच कर्म तहने भेटत

राजीव देखि अँखियाबू जुनि
नै लोक फेर तकने भेटत
221 21 2222
@ राजीव रंजन मिश्र

Sunday, March 16, 2014

गजल-१९९ 

भलमनसाहतकेँ सम्मत जरा लोक होरी खेल गेल
झूठक बाबतमे सत्ते धधा लोक होरी खेल गेल

नेहक दरसन नै भेटल कनी हूक ऊठल मोनमे तँ
मारूक बेदनकेँ लाली बना लोक होरी खेल गेल

खेलल होरी ओना गेल छल नेह बरसेबाकँ लेल
कूरीतक गंगा यमुना बहा लोक होरी खेल गेल

ककरो कखनो नै मोनक मीत भेटल ताहि हेतु
किछु अकुलाहटमे हिय हरा लोक होरी गेल

छोड़त की अनका राजीव औ कृष्ण राधाकेँ
सुच्चा नेहोकेँ तिकऱम बता लोक होरी खेल गेल

२२२२२ २२१२ २१२२ २१२१  
@ राजीव रंजन मिश्र

Monday, March 10, 2014

गजल-१९७ 

बेकारक झगड़ा चलल
झगड़ा नै रगड़ा चलल

ढेका फूजल बेर पर 
बोली धरि तगड़ा चलल 

लागत किछुकेँ चालि जनि 
अंजनि बनि बगड़ा चलल

सभकेँ छी हम बाप कहि 
कनसुपती डगरा चलल

फूइसकेँ राजीव सभ  
अपनेमे अगड़ा चलल 

२२२ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

गजल-196

बाभनबाद जँ बड्ड खराब तँ राड़पनो ठीक नै
दुन्नू चालि प्रकृतिकेँ* दोष समाजक लै नीक नै 

कहबी छैक कएल धएल पड़य बापक* पूत पर
से गप सभकेँ* लेल कहल बाँचत* ककरो* टीक नै  

औ ओहै मुँह* पान खुआबय आ जुत्तों लोककेँ
तैं ई होश रहय जे* बीच सड़क फेकब* पीक नै 

आगू आबि विधान बदलि दी* बुधियारी* ताहिमे
पुरखाकेँ उकटब* आ* गरियैनाइ* सही लीक नै 

नै राजीव झऱत किछु* जाति कि पाँति सनक बातमे
जय जयकार करू गुनकेँ* अल्लाँ*-फल्लाँ* जीक नै

२२२१ १२१ १२११ २११२ २१२   
 @ राजीव रंजन मिश्र
* चिन्हीत शब्द सभमे दू गोट हर्स्वकेँ दिर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि!
अन्तर्राष्ट्रीय नारि दिवस पर समस्त मिथिलानि आ अन्य महिलाकेँ समर्पित हमर ई गजल:

गजल-195
हे नारि सलाम अहाँकेँ
शत बेर प्रणाम अहाँके

छी सृष्टि अहीँक रचल ई
जननी तैँ नाम अहाँके

अछि स्नेह दयाकेँ मुरती
सभ रूप तमाम अहाँकेँ

थिक लाज सिनेह सहोदर
बनि पाग खऱाम अहाँकेँ

राजीव कहब टा अतबे
हो लाल ललाम अहाँकेँ

221 121 122
@ राजीव रंजन मिश्र

Thursday, March 6, 2014

गजल-१९४ 

कतहुँ दीप तँ कतहुँ हिया जरि रहल
कि संसारमे* सभ जना जरि रहल

ककर आब के किछु जिगेसा करत 
धधा आगिमे* महकमा जरि रहल 

कथी मोल कनियो* सिनेहक बचल 
खसा नोर आँखिक* दिया जरि रहल

गजब बात ई* जे बुझनिहार गुम  
बिना बात लै बुरि धहा जरि रहल  

पसरि गेल सगरों कुकुरचालि आ 
दहेजक गछाड़ल* धिया जरि रहल 

असल मारि गूड़क* तँ बुझल धोखरा 
कि गरदा* बनल छड़पिटा जरि रहल 

दुखक बात ई* आब राजिव जे  
जितल दाव से* दस गुना जरि रहल 

१२२१ १ १२ १२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

* चिन्हित शब्द सभमे एक टा दीर्घकेँ,दू गोट हर्स्व मानबाक छूट लेल गेल अछि,सुझाबक अपेक्षा रहत। 

गजल-१९३ 

लोक कतेक तंग छैक 
देखि हदास जंग छैक 

मान ककर किएक देत 
चान चकोर संग छैक 

फेर लहास आइ देखि
मोन मिजाज दंग छैक 

राम रहीम एक भाइ 
नाम पचास रंग छैक 

बस जीयब कि नाम लेल 
यैह बचल कि ढंग छैक 

हारि चलल तँ आब लोक 
साज सचार भंग छैक 
 
२१ १२१ २१२१ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-१९२ 

जिनगी जतरा आ जगत धर्मशाला छै
दैवक हाथक ई लिखल वर्णमाला छै

बुझलक लोकक दुख अपन दर्द सन जे से
आजुक दुनियामे मनुख मर्म बाला छै

देखल बेसी काल ई बात सभतरि जे
लोकक अपने टा हियक दर्द हाला छै

आजुक दिनमे जे टका चारि टा आनल
लोकक खातिर से बनल धर्म आला छै 

जखने ताकब काजकेँ बेरमे ककरो
लागत सभकेँ मारने सर्द पाला छै

बुधियारी राजीव ई मानि चलबामे
जीतल सभदिन टा सचर कर्म बाला छै 

2222 212 21222
@ राजीव रंजन मिश्र