Tuesday, February 25, 2014

गजल-188

लोकक नै रहल कहियो किछुओ भरोसा
नै सभटा पुरल ककरो कखनो भरोसा

जे अछि आइ नहिँयो से भेटत सबेरे
कोना के करत कखनो ककरो भरोसा

कुकुरचालि अपने ई डाढल हियाकेँ
जे काबिल सिनेहक नै तकरो भरोसा


लूटल दाग वस्त्रों टा सभ लहासक
नै राखल ग' दइबोकेँ कनिको भरोसा

कोनो आइकेँ नै ई पुरना पिहानी
जे घनसार बनि छल उड़लो भरोसा

सम्हारू हियाकेँ यौ राजीव कहुना
भरमेलक सदति सभकेँ सगरो भरोसा


222 1222 22122

@ राजीव रंजन मिश्र

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