Saturday, February 15, 2014

गजल-१८६ 

जिनगीमे लोकक गजब खेल देखल
नेहोकेँ वासर अलग भेल देखल 

सॉरीकेँ मोजर क्षमाप्रार्थी सुनि
माथा औ बाबू सनकि गेल देखल 

महिरम के बूझत हियक नेहकेँ किछु 
पच्छिम नै पूरब कतहुँ मेल देखल 

डिबियो नै लेसल भरल साँझ तकरो
बोलीमे घीं आ गरम तेल देखल 

जइरे ने राजीव भेटल सिनेहक
सगरो धरि चतरल अमरबेल देखल

२२२२२ १२ २१२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

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