Thursday, February 13, 2014

गजल-१८५ 

बारल सभ पीर अपन हम ऐ केशक छाँह सघन पर
हारल जग जीत सगर बस ऐ मारुक कारि नयन पर 

नै बुझलहुँ मोन कखन भासल धैलक संग हुनक आ 
गहिया दिन राति रहल लटकल नेहक डोरि वयन पर 

मोनक जे चाह पुरल से लखि रूपक चान रमनगर
नाचल हिय गात मयुर बनि मदमातल श्याम वरन पर

राखल परतारि चलल हम नित सोझे बाट सदति धरि
बाँचल नै चाहि लुटल हिय मतिमारल मंद हसन पर 

राजीवक हाल कहब की नित ठानल आब रहब चुप
किछुए खन बाद मुदा पुनि सुधि हारल बोल बचन पर 

२२२ २११२२ २२२ २११२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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