Friday, February 28, 2014

गजल-१९१ 

बसंतक ई मौसमकेँ सभटा छी अजगुत
दिमागोकेँ रंगत आ ललसा छी अजगुत 

चलल बाटे घाटे आ सुख दुख देखौलक
बेसाहल ई जीवनकेँ जतरा छी अजगुत 

अपन किछु बेगरते टा मोजर आ मसरफ
बड़ी मारूक औ ई गुन नबका छी अजगुत

सबेरे जे कहलक छी संगेमे हमहूँ
तकर भरिदिनकेँ बाबू चरजा छी अजगुत

बुझत नै ई गप क्यौ से देखल राजीवक
निरर्थककेँ अपनेमे रगड़ा छी अजगुत

१२२ २२२२ २२२२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Wednesday, February 26, 2014

गजल-१९० 

हँसि क' बाजल करू आ बजाबू अहाँ
बोल नेहक अपन नित सुनाबू अहाँ

लोक दुसमन रहल छै सिनेहक सदति
डेग सोचल नियारल बढाबू अहाँ

जाहि बाटे चली से भरल फूलसँ हो
चलि क' मंशा करेजक पुराबू अहाँ

हम जियब आ मरब बेश कहुना मुदा
राति चैनक भरल धरि बिताबू अहाँ

प्रान राजीवकेँ आब बाँचब कठिन
बाण रूपक अपन जुनि चलाबू अहाँ

21 2212 2122 12
@ राजीव रंजन मिश्र

Tuesday, February 25, 2014

गजल-१८९ 

नव किछु कहू घटल की कहए छी
ताहूमँहक असल की कहए छी 

मिठगर करू कनी बोल अपन किछु
सदिखन वचन तनल की कहए छी 

आँहाँ विचारमे सभ त' कठिनगर
फरिछा कहू सरल की कहए छी 

आंगुरसँ गाइन पुराओल बहरमे
ई शेर आ गजल की कहए छी 

खहियारि गप्प राजीव कहब जे 
बाजू खखसि दबल की कहए छी 

२२१२ १२२ ११२२
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-188

लोकक नै रहल कहियो किछुओ भरोसा
नै सभटा पुरल ककरो कखनो भरोसा

जे अछि आइ नहिँयो से भेटत सबेरे
कोना के करत कखनो ककरो भरोसा

कुकुरचालि अपने ई डाढल हियाकेँ
जे काबिल सिनेहक नै तकरो भरोसा


लूटल दाग वस्त्रों टा सभ लहासक
नै राखल ग' दइबोकेँ कनिको भरोसा

कोनो आइकेँ नै ई पुरना पिहानी
जे घनसार बनि छल उड़लो भरोसा

सम्हारू हियाकेँ यौ राजीव कहुना
भरमेलक सदति सभकेँ सगरो भरोसा


222 1222 22122

@ राजीव रंजन मिश्र

Monday, February 17, 2014

भक्ति गजल-९  

हे स्वामिनी सरल हिय सिये सुख धाम प्रियतम रामकेँ
चलि आउ हे जनकनन्दनी गहि हाथ शोभा धामकेँ

दुहि नैन बेश ब्याकुल हमर आ मोन मुरछित भेल ई
हे भूमिजा सुनैनाक धी बस एक रट प्रभु नामकेँ

अरजी हमर सियाजी सुनब हमरा तँ दृढ विश्वास जे
हे जानकी अहाँ बिनु कखन दरकार टा किछु गामकेँ

रघुपति प्रिया सहज मति हिया बस नेह बरसा दी अपन
करुणानिधान अवधेश टाकेँ संग रहने बाम केँ

धरनीसुता जगतवन्दिता राजीवकेँ छी कामना
मिथिला हमर सचर धाम हो गुणगान हो अहिठामकेँ 

2212 12212 221 22212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, February 15, 2014

गजल-१८७ 

सुधारक सुझाब आ गुंजाइस संग प्रेषित :

सुख दीप जराकँ आएब अहाँ 
नित बाट हियक दँ आएब अहाँ 

बस गीत सिनेहकेँ हम लिखब 
धरि बोल मधुर लँ आएब अहाँ 

सभ राति इजोरिया चान सन
मुसकी द' अपन जँ आएब अहाँ 

दुख बाट सहजसँ कटि जेतए
बस हाथ हमर धँ आएब अहाँ 

राजीव भरोस आ आसमे
सरकार अबस तँ आएब अहाँ 

२२१ १२१ २२१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 
गजल-१८६ 

जिनगीमे लोकक गजब खेल देखल
नेहोकेँ वासर अलग भेल देखल 

सॉरीकेँ मोजर क्षमाप्रार्थी सुनि
माथा औ बाबू सनकि गेल देखल 

महिरम के बूझत हियक नेहकेँ किछु 
पच्छिम नै पूरब कतहुँ मेल देखल 

डिबियो नै लेसल भरल साँझ तकरो
बोलीमे घीं आ गरम तेल देखल 

जइरे ने राजीव भेटल सिनेहक
सगरो धरि चतरल अमरबेल देखल

२२२२२ १२ २१२२
@ राजीव रंजन मिश्र 

Thursday, February 13, 2014

गजल-१८५ 

बारल सभ पीर अपन हम ऐ केशक छाँह सघन पर
हारल जग जीत सगर बस ऐ मारुक कारि नयन पर 

नै बुझलहुँ मोन कखन भासल धैलक संग हुनक आ 
गहिया दिन राति रहल लटकल नेहक डोरि वयन पर 

मोनक जे चाह पुरल से लखि रूपक चान रमनगर
नाचल हिय गात मयुर बनि मदमातल श्याम वरन पर

राखल परतारि चलल हम नित सोझे बाट सदति धरि
बाँचल नै चाहि लुटल हिय मतिमारल मंद हसन पर 

राजीवक हाल कहब की नित ठानल आब रहब चुप
किछुए खन बाद मुदा पुनि सुधि हारल बोल बचन पर 

२२२ २११२२ २२२ २११२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, February 11, 2014

गजल-१८४ 

हुनक शर्तक नै कोनो जबाब छल
हियक दर्दक नै कोनो हिसाब छल


हमहुँ देखल बड दुनियाँ जहाँन नै 
कतहुँ छोड़ल टा कोनो किताब छल


बना देलक गति जिबिते लहास सन
सनक मोनक जे ई बेहिसाब छल


सुखक कारण टा हुनकर तँ संग आ
मधुर मुस्की ओ बिहुँसल गुलाब छल


कहू मोनक की राजीव हाल हम
दुनू नैना जनि रावी चिनाब छल


1222 222 1212
@ राजीव रंजन मिश्र

Sunday, February 9, 2014

गजल-१८३ 

मुरलीकेँ धुन सुना गेल ओ 
झलकी देखा पड़ा गेल ओ 

चुपचापे ठाढ़ एकातमे 
मुसकीमे हिय रिझा गेल ओ 

ककरा कोना कहब हाल की 
यमुनाकेँ जल सुखा गेल ओ 

जखने किछो कहल नेहमे 
छलिया जे छल बुझा गेल ओ 

हियकेँ राजीव सुनलक कखन 
करमक टा गुण बता गेल ओ 

२२२ २१२ २१२ 
@ राजीव रंजन मिश्र

Thursday, February 6, 2014

गजल-१८२

मुहँ झाँपि क' हँसि रहल ओ कामिनी छल  
अहलादसँ भरि उठल मधुयामिनी छल 

गलहार सजल धवल मुक्ताकँ माला 
हिय पर त' खसा रहल सउदामिनी छल 

सारंग नयन सुनरिकेँ चालि अनमन 
मदमाति क' जनि चलल गजगामिनी छल 

नबरूप सजा क' उतरल अपसरा ओ
मनुसिजकँ रिझा रहल रतिभामिनी छल 

राजीव निरखि निरखि बस रूप टाकेँ  
दिअमानसँ बनि रहल सत जामिनी छल
  
२२११ २१२२ २१२२   
@ राजीव रंजन मिश्र 

Tuesday, February 4, 2014

भक्ति गजल - ८ 

हो ज्ञानक सतमे मान शारदे
चाही एक्के वरदान शारदे

नै पढि लिखि लोकक बुद्धि बज्र हो
राखू आबो ई ध्यान शारदे

हे धवला अभरन हंसवाहिनी
दी निश्छल निर्मल ज्ञान शारदे 

बुधि बड़ घुठ्ठीमे लोककेँ भरल
धरि सत झूठक नै भान शारदे

हे माए नव किछु आब होइ आ
चमकय शिक्षाकेँ चान शारदे

हे वीणा करधारिनि सुनर वयन
घर घरमे सुधि बुधि आन शारदे 

बिनबी कर राजीव जोड़ि दुहि
हो मिथिला मंगलगान शारदे

222 2221 212
@ राजीव रंजन मिश्र 

Sunday, February 2, 2014

गजल-१८१ 

अमीर गरीब नै पाइसँ होइ छैक
अनेर सवाल नै आइसँ होई छैक 

हजार टकाक ई सत् त' बाउ भाइ
पहाड़ सनक गप राइसँ होई छैक 

अटूट भरोस टा राखि चलब सखा त'
समांग विशेष नै भाइसँ होई छैक

प्रयास निरर्थके लोक करत ग' जखन कि
नुकैल त' पेट नै दाइसँ होइ छैक 

अतेक मिजाज आ शान कि ठीक बात
सुजान कि लोक इतराइसँ होइ छैक 

समेट जतेक राखब ग' ततेक नीक
विचार विभेद फटिआइसँ होइ छैक 

हिसाब किताब राजीव क' देख लेब
कुटाइ पिसाइ लेढाइसँ होइ छैक 

१२१ १२१ २२११ २१२१
@ राजीव रंजन मिश्र 

Saturday, February 1, 2014

गजल -१८० 

बुझना गेल अनजान सन
जबरन देलहा मान सन

घर आंगन त' सुनसान छल
चम्बल केर बियबान सन 

बुझनुक लेल जे गारि छल
थेथ्थर लेल दिअमान सन 

मोनक भाब छुछ्छ पड़ल
उस्सर खेत खरिहान सन 

दुःख राजीव ककरा कहब
अपने मोन अछि आन सन 

2221 2212
@ राजीव रंजन मिश्र