Tuesday, January 28, 2014

गजल-१७८

ककरो मजा तँ क्यौ मरि रहल बेबसीसँ
मुसकी सजल वयन लऱि रहल जिन्दगीसँ

देलक ग' चैन ककरा जगतकेँ रिवाज
छाती जुड़ा रहल सभ भने मसखरीसँ

पाटिदार छल बनल जे मठाधीशकेर
चोला बदलि रहल ओ कुशल बानगीसँ 

विस्वास किछु बचल नै प्रजातंत्रमे तँ
धरना खसा रहल ओ धमा चौकड़ीसँ  

लीखत कतेक लेखक समाजक खिधांश
कागत कमे पड़त नित सजग लेखनीसँ 

सकदम पड़ल नगर गाम राजीव दुखसँ 
धरि घूमि फिरि रहल किछु सजल पालकीसँ 

2212 122 122 121
@ राजीव रंजन मिश्र 

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