Saturday, January 11, 2014

गजल-१६७

जिनगी जतरा छै मानि चलल हम
पोथी पतरा नै गानि रहल हम

देखल ककरो नै चाँकि कनिकबो
डाहल मोनक निज आप जरल हम

कनकन ठंढीमे ठिठुरल महि धरि 
नेहक धधरा ने तापि सकल हम

टोकल ककरो नै गाम नगर बस
नै झूकल आ नै कात हटल हम 

धरनी ज्ञानक थिक स्वर्णकलश बुझि
ठोपे ठोपे बुरिलेल चखल हम 

गुमसुम अपनामे राजीव पड़ल नित
कबिलाहाकेँ कुटिचालि गमल हम 

२२२२ २२१ १२२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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