Sunday, December 8, 2013

गजल-१५१ 

आब आर कि पार हेतए 
ताकि ताकि शिकार हेतए 

छद्म भेष धरत त' फेर ओ 
दोहराकँ बिमार हेतए 

राज धर्म कठिन त' बाट धरि 
एक ठाम कछार हेतए  

एक बेर जँ हूसि गेल से 
शेर फेर सियार हेतए  

सोच नीक जँ लोक बेदकेँ 
दूर हारि बिकार हेतए  

रंग भेद सफल कखन रहल 
लोकतंत्र लचार हेतए 

सोच यैह रहत सदति हमर 
वीरकेर श्रिंगार हेतए  

बाट घाट चलब त' सीख ली 
जीत जैब कि हार हेतए  

२१२१ १२१ २१२ 

@ राजीव रंजन मिश्र  

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